हरिक्षेत्र: Difference between revisions
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<li | <li class="HindiText">इस क्षेत्र का अवस्थान व विस्तारादि-देखें [[ लोक#3.3 | लोक - 3.3]]।</span></li> | ||
<li | <li class="HindiText">इस क्षेत्र में काल वर्तन आदि संबंधी विशेषताएँ-देखें [[ काल#4.15 | काल - 4.15]]।</span></li> | ||
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<span class="HindiText"> जंबूद्वीप के सात क्षेत्रों में तीसरा क्षेत्र । इसका विस्तार 8421 1/19 योजन है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.13-14, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.159-160 </span></span> | <span class="HindiText"> जंबूद्वीप के सात क्षेत्रों में तीसरा क्षेत्र । इसका विस्तार 8421 1/19 योजन है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#13|हरिवंशपुराण - 5.13-14]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_105#159|पद्मपुराण - 105.159-160]] </span></span> | ||
Latest revision as of 15:31, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- राजवार्तिक/3/10/8/172/27 हरि: सिंहस्तस्य शुक्लरूपपरिणामित्वात् तद्वर्णमनुष्याद्यषितत्वाद्धरिवर्ष: इत्याख्यायते। =हरि अर्थात् सिंह के समान शुक्ल रूपवाले मनुष्य इसमें रहते हैं, अत: यह हरिवर्ष कहलाता है। (यह अढ़ाई द्वीपों में प्रसिद्ध तीसरा क्षेत्र है)।
- इस क्षेत्र का अवस्थान व विस्तारादि-देखें लोक - 3.3।
- इस क्षेत्र में काल वर्तन आदि संबंधी विशेषताएँ-देखें काल - 4.15।
पुराणकोष से
जंबूद्वीप के सात क्षेत्रों में तीसरा क्षेत्र । इसका विस्तार 8421 1/19 योजन है । हरिवंशपुराण - 5.13-14, पद्मपुराण - 105.159-160