केवलज्ञान: Difference between revisions
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<p class="HindiText">जीवन्मुक्त योगियों का एक निर्विकल्प अतींद्रिय अतिशय ज्ञान है जो बिना इच्छा व बुद्धि के प्रयोग से सर्वांग से सर्वकाल व क्षेत्र संबंधी सर्व पदार्थों को हस्तामलकवत् टंकोत्कीर्ण प्रत्यक्ष देखता है। इसी के कारण वह योगी सर्वज्ञ कहाते हैं। स्व व पर ग्राही होने के कारण इसमें भी ज्ञान का सामान्य लक्षण घटित होता है। यह ज्ञान का स्वाभाविक व शुद्ध परिणमन है।</p> | <p class="HindiText">जीवन्मुक्त योगियों का एक निर्विकल्प अतींद्रिय अतिशय ज्ञान है जो बिना इच्छा व बुद्धि के प्रयोग से सर्वांग से सर्वकाल व क्षेत्र संबंधी सर्व पदार्थों को हस्तामलकवत् टंकोत्कीर्ण प्रत्यक्ष देखता है। इसी के कारण वह योगी सर्वज्ञ कहाते हैं। स्व व पर ग्राही होने के कारण इसमें भी ज्ञान का सामान्य लक्षण घटित होता है। यह ज्ञान का स्वाभाविक व शुद्ध परिणमन है।</p> | ||
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<li class="HindiText"> केवलज्ञान का व्युत्पत्ति अर्थ।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान निर्देश#1.1 | केवलज्ञान का व्युत्पत्ति अर्थ। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> यह मोह व ज्ञानावरणीय के क्षय से उत्पन्न होता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान निर्देश#1.5 | यह मोह व ज्ञानावरणीय के क्षय से उत्पन्न होता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> केवलज्ञान निर्देश का मतार्थ।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान निर्देश#1.6 | केवलज्ञान निर्देश का मतार्थ। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सर्व को जानता हुआ भी व्याकुल नहीं होता।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की विचित्रता#2.1 |सर्व को जानता हुआ भी व्याकुल नहीं होता।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सर्वांग से जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की विचित्रता#2.2 | सर्वांग से जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> प्रतिबिंबवत् जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की विचित्रता#2.3 | प्रतिबिंबवत् जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> टंकोत्कीर्णवत् जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की विचित्रता#2.4 | टंकोत्कीर्णवत् जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> अक्रमरूप से युगपत् एकक्षण में जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की विचित्रता#2.5 | अक्रमरूप से युगपत् एकक्षण में जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> तात्कालिकवत् जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की विचित्रता#2.6 | तात्कालिकवत् जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सबकुछ जानता है।<br /> | <li class="HindiText">[[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.1 | सबकुछ जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> समस्त लोकालोक को जानता है।<br /> | <li class="HindiText">[[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.2 |समस्त लोकालोक को जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> संपूर्ण द्रव्य क्षेत्र काल भाव को जानता है।<br /> | <li class="HindiText">[[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.3 | संपूर्ण द्रव्य क्षेत्र काल भाव को जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सर्व द्रव्यों व उनकी पर्यायों को जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.4 |सर्व द्रव्यों व उनकी पर्यायों को जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> त्रिकाली पर्यायों को जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.5 |त्रिकाली पर्यायों को जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सद्भूत व असद्भूत सब पर्यायों को जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.6 |सद्भूत व असद्भूत सब पर्यायों को जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> प्रयोजनभूत व अप्रयोजनभूत सबको जानता है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.7 |प्रयोजनभूत व अप्रयोजनभूत सबको जानता है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> इससे भी अनंतगुणा जानने को समर्थ है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.8 |इससे भी अनंतगुणा जानने को समर्थ है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> इसे समर्थ न माने सो अज्ञानी है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान की सर्वग्राहकता#3.9 |इसे समर्थ न माने सो अज्ञानी है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> केवलज्ञान ज्ञानसामान्य के बराबर है।–देखें [[ ज्ञान#1.4.2 | ज्ञान - 1.4.2]]।</li> | <li class="HindiText"> केवलज्ञान ज्ञानसामान्य के बराबर है।–देखें [[ ज्ञान#1.4.2 | ज्ञान - 1.4.2]]।</li> | ||
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<li class="HindiText"> यदि सर्व को न जाने तो एक को भी नहीं जान सकता।<br /> | <li class="HindiText"> [[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.1 | यदि सर्व को न जाने तो एक को भी नहीं जान सकता। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> यदि त्रिकाल को न जाने तो इसकी दिव्यता ही क्या।<br /> | <li class="HindiText"> [[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.2 | यदि त्रिकाल को न जाने तो इसकी दिव्यता ही क्या। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> अपरिमित विषय ही तो इसका माहात्म्य है।<br /> | <li class="HindiText"> [[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.3 | अपरिमित विषय ही तो इसका माहात्म्य है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सर्वज्ञत्व का अभाववादी क्या स्वयं सर्वज्ञ है? <br /> | <li class="HindiText">[[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.4 | सर्वज्ञत्व का अभाववादी क्या स्वयं सर्वज्ञ है? ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> बाधक प्रमाण का अभाव होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।<br /> | <li class="HindiText">[[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.5 | बाधक प्रमाण का अभाव होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> अतिशय पूज्य होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।<br /> | <li class="HindiText"> [[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.6 | अतिशय पूज्य होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> केवलज्ञान का अंश सर्वप्रत्यक्ष होने से यह सिद्ध है।<br /> | <li class="HindiText"> [[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.7 | केवलज्ञान का अंश सर्वप्रत्यक्ष होने से यह सिद्ध है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सूक्ष्मादि पदार्थ प्रमेय होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।<br /> | <li class="HindiText"> [[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.8 | सूक्ष्मादि पदार्थ प्रमेय होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> कर्मों व दोषों का अभाव होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।<br /> | <li class="HindiText">[[केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु#4.9 | कर्मों व दोषों का अभाव होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> रागादि दोषों का अभाव संभव है।–देखें [[ राग#5.1 | राग - 5.1]]।</li> | <li class="HindiText"> रागादि दोषों का अभाव संभव है।–देखें [[ राग#5.1 | राग - 5.1]]।</li> | ||
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<li | <li class="HindiText"><strong> [[ केवलज्ञान विषयक शंका−समाधान#5 | केवलज्ञान विषयक शंका समाधान ]]</strong> <br /> | ||
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<li class="HindiText"> केवलज्ञान असहाय कैसे है ? <br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान विषयक शंका−समाधान#5.1 | केवलज्ञान असहाय कैसे है ?]] <br /> | ||
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<li class="HindiText"> विनष्ट व अनुत्पन्न पदार्थों का ज्ञान कैसे संभव है ? <br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान विषयक शंका−समाधान#5.2 | विनष्ट व अनुत्पन्न पदार्थों का ज्ञान कैसे संभव है ?]] <br /> | ||
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<li class="HindiText"> अपरिणामी केवलज्ञान परिणामी पदार्थों को कैसे जान सकता है ? <br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान विषयक शंका−समाधान#5.3 | अपरिणामी केवलज्ञान परिणामी पदार्थों को कैसे जान सकता है ?]] <br /> | ||
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<li class="HindiText"> अनादि व अनंत ज्ञानगम्य कैसे हो ? देखें [[ अनंत | <li class="HindiText"> अनादि व अनंत ज्ञानगम्य कैसे हो ? देखें [[ अनंत | अनंत]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> केवलज्ञानी को प्रश्न सुनने की क्या आवश्यकता ? <br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान विषयक शंका−समाधान#5.4 | केवलज्ञानी को प्रश्न सुनने की क्या आवश्यकता ? ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> केवलज्ञान की प्रत्यक्षता संबंधी शंकाएँ–देखें [[ प्रत्यक्ष ]]।<br /> | <li class="HindiText"> केवलज्ञान की प्रत्यक्षता संबंधी शंकाएँ–देखें [[ प्रत्यक्ष ]]। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सर्वज्ञत्व के साथ वक्तृत्व का विरोध नहीं है।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान विषयक शंका−समाधान#5.5 | सर्वज्ञत्व के साथ वक्तृत्व का विरोध नहीं है। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> अर्हंतों को ही क्यों हो, अन्य को क्यों नहीं।<br /> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान विषयक शंका−समाधान#5.6 | अर्हंतों को ही क्यों हो, अन्य को क्यों नहीं। ]]<br /> | ||
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<li class="HindiText"> सर्वज्ञत्व जानने का प्रयोजन।</li> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान विषयक शंका−समाधान#5.7 | सर्वज्ञत्व जानने का प्रयोजन। ]]</li> | ||
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<li class="HindiText"><strong> केवलज्ञान का स्वपरप्रकाशकपना</strong> | <li class="HindiText"><strong> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना | केवलज्ञान का स्वपरप्रकाशकपना]]</strong> | ||
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<li class="HindiText"> निश्चय से स्व को व्यवहार से पर को जानता | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.1 | निश्चय से स्व को और व्यवहार से पर को जानता है]] </li> | ||
<li class="HindiText"> निश्चय से पर को न जानने का तात्पर्य उपयोग का पर के साथ तन्मय न होना है।</li> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.2 | निश्चय से पर को न जानने का तात्पर्य उपयोग का पर के साथ तन्मय न होना है।]]</li> | ||
<li class="HindiText"> आत्मा ज्ञेय के साथ नहीं, पर ज्ञेयाकार के साथ तन्मय होता है।</li> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.3 | आत्मा ज्ञेय के साथ नहीं, पर ज्ञेयाकार के साथ तन्मय होता है।]]</li> | ||
<li class="HindiText"> आत्मा ज्ञेयरूप नहीं, पर ज्ञेयाकाररूप से अवश्य परिणमन करता है।</li> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.4 | आत्मा ज्ञेयरूप नहीं, पर ज्ञेयाकाररूप से अवश्य परिणमन करता है।]]</li> | ||
<li class="HindiText"> ज्ञानाकार व ज्ञेयाकार का अर्थ। | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.5 | ज्ञानाकार व ज्ञेयाकार का अर्थ। ]] </li> | ||
<li class="HindiText"> वास्तव में ज्ञेयाकारों से प्रतिबिंबित निज आत्मा को देखते हैं।</li> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.6 | वास्तव में ज्ञेयाकारों से प्रतिबिंबित निज आत्मा को देखते हैं।]]</li> | ||
<li class="HindiText"> ज्ञेयाकार में ज्ञेय का उपचार करके ज्ञेय को जाना कहा जाता है। | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.7 | ज्ञेयाकार में ज्ञेय का उपचार करके ज्ञेय को जाना कहा जाता है। ]] </li> | ||
<li class="HindiText"> छद्मस्थ भी निश्चय से स्व को व्यवहार से पर को जानते हैं।</li> | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.8 | छद्मस्थ भी निश्चय से स्व को व्यवहार से पर को जानते हैं।]]</li> | ||
<li class="HindiText"> केवलज्ञान के स्वपरप्रकाशकपने का समन्वय। | <li class="HindiText"> [[ केवलज्ञान का स्वपर-प्रकाशकपना#6.9 | केवलज्ञान के स्वपरप्रकाशकपने का समन्वय। ]] </li> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
जीवन्मुक्त योगियों का एक निर्विकल्प अतींद्रिय अतिशय ज्ञान है जो बिना इच्छा व बुद्धि के प्रयोग से सर्वांग से सर्वकाल व क्षेत्र संबंधी सर्व पदार्थों को हस्तामलकवत् टंकोत्कीर्ण प्रत्यक्ष देखता है। इसी के कारण वह योगी सर्वज्ञ कहाते हैं। स्व व पर ग्राही होने के कारण इसमें भी ज्ञान का सामान्य लक्षण घटित होता है। यह ज्ञान का स्वाभाविक व शुद्ध परिणमन है।
- केवलज्ञान निर्देश
- केवलज्ञान में विकल्प का कथंचित् सद्भाव।–देखें विकल्प ।
- केवलज्ञान भी ज्ञान सामान्य का अंश है।–देखें ज्ञान -1.4.2
- केवलज्ञान कथंचित् परिणामी है।–देखें केवलज्ञानी - 5.3।
- केवलज्ञान में शुद्ध परिणमन होता है।–देखें परिणमन
- यह शुद्धात्मा में ही उत्पन्न होता है।–देखें केवलज्ञान - 5.6।
- सभी मार्गणास्थानों में आय के अनुसार ही व्यय।–देखें मार्गणा-6 ।
- तीसरे व चौथे काल में ही होना संभव है।–देखें मोक्ष - 4.3।
- केवलज्ञान विषयक गुणस्थान, मार्गणास्थान, व जीवसमास आदि के स्वामित्व विषयक 20 प्ररूपणाएँ–देखें सत् ।
- केवलज्ञान विषयक सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव व अल्पबहुत्व–देखें वह वह नाम ।
- केवलज्ञान निसर्गज नहीं होता–देखें अधिगम - 10
- केवलज्ञान में विकल्प का कथंचित् सद्भाव।–देखें विकल्प ।
- केवलज्ञान की विचित्रता
- केवलज्ञान की सर्वग्राहकता
- सबकुछ जानता है।
- समस्त लोकालोक को जानता है।
- संपूर्ण द्रव्य क्षेत्र काल भाव को जानता है।
- सर्व द्रव्यों व उनकी पर्यायों को जानता है।
- त्रिकाली पर्यायों को जानता है।
- सद्भूत व असद्भूत सब पर्यायों को जानता है।
- अनंत व असंख्यात को जानता है–देखें अनंत - 2.4,5।
- सबकुछ जानता है।
- केवलज्ञान ज्ञानसामान्य के बराबर है।–देखें ज्ञान - 1.4.2।
- केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु
- यदि सर्व को न जाने तो एक को भी नहीं जान सकता।
- यदि त्रिकाल को न जाने तो इसकी दिव्यता ही क्या।
- अपरिमित विषय ही तो इसका माहात्म्य है।
- सर्वज्ञत्व का अभाववादी क्या स्वयं सर्वज्ञ है?
- बाधक प्रमाण का अभाव होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।
- अतिशय पूज्य होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।
- केवलज्ञान का अंश सर्वप्रत्यक्ष होने से यह सिद्ध है।
- मति आदि ज्ञान केवलज्ञान के अंश हैं।–देखें ज्ञान - 1.4.2।
- यदि सर्व को न जाने तो एक को भी नहीं जान सकता।
- केवलज्ञान विषयक शंका समाधान
- केवलज्ञान असहाय कैसे है ?
- विनष्ट व अनुत्पन्न पदार्थों का ज्ञान कैसे संभव है ?
- अपरिणामी केवलज्ञान परिणामी पदार्थों को कैसे जान सकता है ?
- अनादि व अनंत ज्ञानगम्य कैसे हो ? देखें अनंत।
- केवलज्ञान की प्रत्यक्षता संबंधी शंकाएँ–देखें प्रत्यक्ष । ]]
- केवलज्ञान असहाय कैसे है ?
- केवलज्ञान का स्वपरप्रकाशकपना
- निश्चय से स्व को और व्यवहार से पर को जानता है
- निश्चय से पर को न जानने का तात्पर्य उपयोग का पर के साथ तन्मय न होना है।
- आत्मा ज्ञेय के साथ नहीं, पर ज्ञेयाकार के साथ तन्मय होता है।
- आत्मा ज्ञेयरूप नहीं, पर ज्ञेयाकाररूप से अवश्य परिणमन करता है।
- ज्ञानाकार व ज्ञेयाकार का अर्थ।
- वास्तव में ज्ञेयाकारों से प्रतिबिंबित निज आत्मा को देखते हैं।
- ज्ञेयाकार में ज्ञेय का उपचार करके ज्ञेय को जाना कहा जाता है।
- छद्मस्थ भी निश्चय से स्व को व्यवहार से पर को जानते हैं।
- केवलज्ञान के स्वपरप्रकाशकपने का समन्वय।
- ज्ञान और दर्शन स्वभावी आत्मा ही वास्तव में स्वपर प्रकाशी है।–देखें दर्शन - 2.6।
- यदि एक को नहीं जानता तो सर्व को भी नहीं जानता–देखें श्रुतकेवली