द्वींंद्रिय जीव: Difference between revisions
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<span class="GRef">पंचास्तिकाय 112-117</span><p class="PrakritText"> एदे जीवणिकाया पंचविधा पुढविकाइयादीया। मणपरिणामाविरहिदा जीवा एगेंदिया भणिया ।112। संबुक्कमादुवाहा संखा सिप्पी अपादगा य किमी। जाणंति रसं फासं जे ते '''बेइंदिया''' जीवा ।114। जूगागुंभीमक्कणपिपीलिया बिच्छयादिया कीडा। जाणंति रसं फासं गंधं तेइंदिया जीवा ।115। उद्दंसमसयमक्खियमधुकरिभमरा पतंगमादीया। रूवं रसं च गंधं फासं पुण ते विजाणंति ।116। सुरणरणायतिरिया वण्णरसप्फासगंधसद्दण्हू। जलचरथलचरखचरा बलिया पंचेंदिया जीवा ।117।</p> | |||
<p class="HindiText">= इन पृथ्वीकायिक आदि पाँच प्रकार के जीवनिकायों को मन परिणाम रहित एकेंद्रिय जीव (सर्वज्ञ ने) कहा है ।112। शंबूक, मातृकवाह, शंख, सीप और पग रहित कृमि-जो कि रस और स्पर्श को जानते हैं, वे '''द्वींद्रिय जीव''' हैं ।114। .....</p> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ इंद्रिय#4.2 | इंद्रिय - 4.2]]</p> | |||
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Latest revision as of 14:57, 15 August 2023
पंचास्तिकाय 112-117
एदे जीवणिकाया पंचविधा पुढविकाइयादीया। मणपरिणामाविरहिदा जीवा एगेंदिया भणिया ।112। संबुक्कमादुवाहा संखा सिप्पी अपादगा य किमी। जाणंति रसं फासं जे ते बेइंदिया जीवा ।114। जूगागुंभीमक्कणपिपीलिया बिच्छयादिया कीडा। जाणंति रसं फासं गंधं तेइंदिया जीवा ।115। उद्दंसमसयमक्खियमधुकरिभमरा पतंगमादीया। रूवं रसं च गंधं फासं पुण ते विजाणंति ।116। सुरणरणायतिरिया वण्णरसप्फासगंधसद्दण्हू। जलचरथलचरखचरा बलिया पंचेंदिया जीवा ।117।
= इन पृथ्वीकायिक आदि पाँच प्रकार के जीवनिकायों को मन परिणाम रहित एकेंद्रिय जीव (सर्वज्ञ ने) कहा है ।112। शंबूक, मातृकवाह, शंख, सीप और पग रहित कृमि-जो कि रस और स्पर्श को जानते हैं, वे द्वींद्रिय जीव हैं ।114। .....
अधिक जानकारी के लिये देखें इंद्रिय - 4.2