लाघव: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> भगवती आराधना / | <p><span class="GRef"> भगवती आराधना /विजयोदया टीका /244/466/5 </span> <span class="SanskritText">शरीरस्य लाघवगुणो बाह्येन तपसा भवति। लघुशरीरस्य आवश्यकक्रियाः सुकरा भवंति। स्वाध्यायध्याने चाक्लेशसंपाद्ये भवतः। </span>= <span class="HindiText">तपश्चरण से देह में लाघव गुण प्राप्त होता है अर्थात् शरीर का भारीपन नष्ट होता है जिससे आवश्यकादि क्रिया सुकर होती है, स्वाध्याय और ध्यान क्लेश के बिना किये जाते हैं।</span></p> | ||
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Latest revision as of 15:47, 14 November 2022
भगवती आराधना /विजयोदया टीका /244/466/5 शरीरस्य लाघवगुणो बाह्येन तपसा भवति। लघुशरीरस्य आवश्यकक्रियाः सुकरा भवंति। स्वाध्यायध्याने चाक्लेशसंपाद्ये भवतः। = तपश्चरण से देह में लाघव गुण प्राप्त होता है अर्थात् शरीर का भारीपन नष्ट होता है जिससे आवश्यकादि क्रिया सुकर होती है, स्वाध्याय और ध्यान क्लेश के बिना किये जाते हैं।