अवक्तव्य भंग: Difference between revisions
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<p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> राजवार्तिक/4/42/15/258/13 </span>अथवा वस्तुनि मुख्यप्रवृत्त्या तुल्यबलयो: परस्पराभिधानप्रतिबंधे सति इष्टविपरीतनिर्गुणत्वापत्ते: विवक्षितोभयगुणत्वेनाऽनभिधानात् अवक्तव्य:।</span> =<span class="HindiText">शब्द में वस्तु के तुल्य बल वाले दो धर्मों का मुख्य रूप से युगपत् कथन करने की शक्यता न होने से या परस्पर शब्द प्रतिबंध होने से निर्गुणत्व का प्रसंग होने से तथा विवक्षित उभय धर्मों का प्रतिपादन न होने से वस्तु '''अवक्तव्य''' है। (<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक 2/1/6/56/482/13 </span>)</span></p> | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> राजवार्तिक/4/42/15/258/13 </span>अथवा वस्तुनि मुख्यप्रवृत्त्या तुल्यबलयो: परस्पराभिधानप्रतिबंधे सति इष्टविपरीतनिर्गुणत्वापत्ते: विवक्षितोभयगुणत्वेनाऽनभिधानात् अवक्तव्य:।</span> =<span class="HindiText">शब्द में वस्तु के तुल्य बल वाले दो धर्मों का मुख्य रूप से युगपत् कथन करने की शक्यता न होने से या परस्पर शब्द प्रतिबंध होने से निर्गुणत्व का प्रसंग होने से तथा विवक्षित उभय धर्मों का प्रतिपादन न होने से वस्तु '''अवक्तव्य''' है। (<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक 2/1/6/56/482/13 </span>)</span></p> | ||
<p> अन्य परिभाषाओं और विशेष जानकारी के लिए देखें [[ सप्तभंगी#6 | सप्तभंगी - 6]]।</p> | <p> अन्य परिभाषाओं और सप्तभंग सम्बन्धी विशेष जानकारी के लिए देखें [[ सप्तभंगी#6 | सप्तभंगी - 6]]।</p> | ||
Revision as of 19:29, 5 November 2022
सप्त भंगी के सातभंगों में से एक।
राजवार्तिक/4/42/15/258/13 अथवा वस्तुनि मुख्यप्रवृत्त्या तुल्यबलयो: परस्पराभिधानप्रतिबंधे सति इष्टविपरीतनिर्गुणत्वापत्ते: विवक्षितोभयगुणत्वेनाऽनभिधानात् अवक्तव्य:। =शब्द में वस्तु के तुल्य बल वाले दो धर्मों का मुख्य रूप से युगपत् कथन करने की शक्यता न होने से या परस्पर शब्द प्रतिबंध होने से निर्गुणत्व का प्रसंग होने से तथा विवक्षित उभय धर्मों का प्रतिपादन न होने से वस्तु अवक्तव्य है। ( श्लोकवार्तिक 2/1/6/56/482/13 )
अन्य परिभाषाओं और सप्तभंग सम्बन्धी विशेष जानकारी के लिए देखें सप्तभंगी - 6।