अवक्तव्य भंग
From जैनकोष
सप्त भंगी के सातभंगों में से एक।
राजवार्तिक/4/42/15/258/13 अथवा वस्तुनि मुख्यप्रवृत्त्या तुल्यबलयो: परस्पराभिधानप्रतिबंधे सति इष्टविपरीतनिर्गुणत्वापत्ते: विवक्षितोभयगुणत्वेनाऽनभिधानात् अवक्तव्य:। =शब्द में वस्तु के तुल्य बल वाले दो धर्मों का मुख्य रूप से युगपत् कथन करने की शक्यता न होने से या परस्पर शब्द प्रतिबंध होने से निर्गुणत्व का प्रसंग होने से तथा विवक्षित उभय धर्मों का प्रतिपादन न होने से वस्तु अवक्तव्य है। ( श्लोकवार्तिक 2/1/6/56/482/13 )
अन्य परिभाषाओं और सप्तभंग सम्बन्धी विशेष जानकारी के लिए देखें सप्तभंगी - 6।