अनृत: Difference between revisions
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== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p>देखें [[ सत्य ]]।</p> | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/9/347/6 </span><span class="SanskritText">'''अनृत'''वादीऽश्रद्धेयोभवति इहैव च जिह्वाच्छेदादीन् प्रतिलभते मिथ्याभ्याख्यानदु:खितेभ्यश्च बद्धवैरेभ्यो बहूनि व्यसनान्यवाप्नोति प्रेत्य चाशुभां गतिं गर्हितश्च भवतीति अनृतवचनादुपरम: श्रेयान् ।...एवं हिंसादिष्वपायावद्यदर्शनं भावनीयम् ।</span>=<span class="HindiText">1. क्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुत्वप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचीभाषण ये सत्यव्रत की पाँच भावनाएँ हैं। 2. असत्यवादी का कोई श्रद्धान नहीं करता। वह इस लोक में जिह्वाछेद आदि दु:खों को प्राप्त होता है तथा असत्य बोलने से दु:खी हुए अतएव जिन्होंने वैर बाँध लिया है, उनसे बहुत प्रकार की आपत्तियों को और परलोक में अशुभगति को प्राप्त होता है और गर्हित भी होता है इसलिए असत्य वचन का त्याग श्रेयस्कर है।...इस प्रकार हिंसा आदि दोषों में अपाय और अवद्य के दर्शन की भावना करनी चाहिए।</span></p> | ||
<p class="HindiText"> देखें [[ सत्य ]]।</p> | |||
Revision as of 16:31, 23 December 2022
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/7/9/347/6 अनृतवादीऽश्रद्धेयोभवति इहैव च जिह्वाच्छेदादीन् प्रतिलभते मिथ्याभ्याख्यानदु:खितेभ्यश्च बद्धवैरेभ्यो बहूनि व्यसनान्यवाप्नोति प्रेत्य चाशुभां गतिं गर्हितश्च भवतीति अनृतवचनादुपरम: श्रेयान् ।...एवं हिंसादिष्वपायावद्यदर्शनं भावनीयम् ।=1. क्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुत्वप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचीभाषण ये सत्यव्रत की पाँच भावनाएँ हैं। 2. असत्यवादी का कोई श्रद्धान नहीं करता। वह इस लोक में जिह्वाछेद आदि दु:खों को प्राप्त होता है तथा असत्य बोलने से दु:खी हुए अतएव जिन्होंने वैर बाँध लिया है, उनसे बहुत प्रकार की आपत्तियों को और परलोक में अशुभगति को प्राप्त होता है और गर्हित भी होता है इसलिए असत्य वचन का त्याग श्रेयस्कर है।...इस प्रकार हिंसा आदि दोषों में अपाय और अवद्य के दर्शन की भावना करनी चाहिए।
देखें सत्य ।
पुराणकोष से
पाँच पापों में दूसरा पाप-प्राणियों का अहितकर वचन । महापुराण 2.23, हरिवंशपुराण 58.130 देखें पाप