अंतर्द्धान ऋद्धि: Difference between revisions
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<span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०३१-१०३२</span> <p class="PrakritText">सेलसिलातरुपमुहाणब्भंतरं होइदूण गमणं व। जं वच्चदि सा ऋद्धी अप्पडिघादेत्ति गुणणामं ।१०३१। जं हवदि अद्दिसत्तं अंतद्धाणाभिधाणरिद्धी सा। जुगवें बहुरूवाणि जं विरयदि कामरूवरिद्धी सा ।१०३२। | <span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०३१-१०३२</span> <p class="PrakritText">सेलसिलातरुपमुहाणब्भंतरं होइदूण गमणं व। जं वच्चदि सा ऋद्धी अप्पडिघादेत्ति गुणणामं ।१०३१। जं हवदि अद्दिसत्तं अंतद्धाणाभिधाणरिद्धी सा। जुगवें बहुरूवाणि जं विरयदि कामरूवरिद्धी सा ।१०३२। | ||
<p class="HindiText">= जिस | <p class="HindiText">= जिस ऋद्धि के बल से शैल, शिला और वृक्षादि के मध्य में होकर आकाश के समान गमन किया जाता है, वह सार्थक नामवाली अप्रतिघात ऋद्धि है ।१०३१। जिस ऋद्धिसे अदृश्यता प्राप्त होती है, वह '''अन्तर्धान''' नामक ऋद्धि है; और जिससे युगपत् बहुत-से रूपों को रचता है, वह कामरूप ऋद्धि है ।१०३२। | ||
(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०३/५</span>); (<span class="GRef">चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१९/६</span>) <br> | (<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०३/५</span>); (<span class="GRef">चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१९/६</span>) <br> | ||
Revision as of 14:01, 12 March 2023
तपश्चरण के प्रभाव से कदाचित् किन्हीं योगी जनों को कुछ चामत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। उन्हें ऋद्धि कहते हैं। इसके अनेकों भेद-प्रभेद हैं।
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०३१-१०३२
सेलसिलातरुपमुहाणब्भंतरं होइदूण गमणं व। जं वच्चदि सा ऋद्धी अप्पडिघादेत्ति गुणणामं ।१०३१। जं हवदि अद्दिसत्तं अंतद्धाणाभिधाणरिद्धी सा। जुगवें बहुरूवाणि जं विरयदि कामरूवरिद्धी सा ।१०३२।
= जिस ऋद्धि के बल से शैल, शिला और वृक्षादि के मध्य में होकर आकाश के समान गमन किया जाता है, वह सार्थक नामवाली अप्रतिघात ऋद्धि है ।१०३१। जिस ऋद्धिसे अदृश्यता प्राप्त होती है, वह अन्तर्धान नामक ऋद्धि है; और जिससे युगपत् बहुत-से रूपों को रचता है, वह कामरूप ऋद्धि है ।१०३२।
(राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०३/५); (चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१९/६)
ऋद्धियों के बारे में विस्तार से जानने के लिये देखें ऋद्धि।