रसत्याग: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> निद्रा और इंद्रिय विजय के लिए किया जानेवाला एक बाह्य तप । इसमें नित्य आलस्य रहित होकर दूध, घी, गुड़ आदि रसों का त्याग किया जाता है । इसका अपर नाम रसपरित्याग है । <span class="GRef"> महापुराण 20. 177, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 64.24, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.35 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> निद्रा और इंद्रिय विजय के लिए किया जानेवाला एक बाह्य तप । इसमें नित्य आलस्य रहित होकर दूध, घी, गुड़ आदि रसों का त्याग किया जाता है । इसका अपर नाम रसपरित्याग है । <span class="GRef"> महापुराण 20. 177, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_64#24|हरिवंशपुराण - 64.24]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.35 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
निद्रा और इंद्रिय विजय के लिए किया जानेवाला एक बाह्य तप । इसमें नित्य आलस्य रहित होकर दूध, घी, गुड़ आदि रसों का त्याग किया जाता है । इसका अपर नाम रसपरित्याग है । महापुराण 20. 177, हरिवंशपुराण - 64.24, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.35