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<p class="HindiText">* अधिककाल मिथ्यात्वयुक्त रहने पर सादि भी मिथ्यादृष्टि अनादिवत् हो जाता है।–देखें [[ सम्यग्दर्शन#IV.2.6 | सम्यग्दर्शन - IV.2.6]]। </p> | |||
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<li class='HindiText'> | <li class='HindiText'>मिथ्यादृष्टि निर्देश</li> | ||
<p> | <p class="HindiText">* मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में जीवसमास, मार्गणा स्थान आदि के स्वामित्व संबंधी 20 प्ररूपणाएँ–देखें [[ सत् ]]।</p> | ||
<p class="HindiText">* मिथ्यादृष्टियों की सत् संख्या क्षेत्र स्पर्शन काल अंतर भाव अल्पबहुत्व रूप 8 प्ररूपणाएँ–देखें [[ वह वह नाम ]]।</p> | |||
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<li class='HindiText'>[[ #2.1 | | <li class='HindiText'>[[ #2.1 | मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में कदाचित् अनंतानुबंधी के उदय के अभाव की संभावना।]]</li> | ||
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<li class='HindiText'>[[ #2.4 | | <li class='HindiText'>[[ #2.2 | मिथ्यादृष्टि को सर्व व्यवहारधर्म व वैराग्य आदि संभव है।]]</li> | ||
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<li class='HindiText'>[[ #2.4 | उन्हें परसमय व मिथ्यादृष्टि कहने का कारण।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #2.5 | मिथ्यादृष्टि की बाह्य पहिचान।]]</li> | |||
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<p class="HindiText"> • प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी इंद्रियाँ। - देखें [[ इंद्रिय#1.2 | इंद्रिय - 1.2]]</p> | <p class="HindiText"> • प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी इंद्रियाँ। - देखें [[ इंद्रिय#1.2 | इंद्रिय - 1.2]]</p> | ||
<p class="HindiText"> • अवग्रह और दर्शन में अंतर। - देखें [[ दर्शन# | दर्शन ]]</p> | <p class="HindiText"> • अवग्रह और दर्शन में अंतर। - देखें [[ दर्शन# | दर्शन ]]</p> | ||
<p class="HindiText"> • अवग्रह व ईहा में अंतर।- देखें [[ अवग्रह#1.2.2 | अवग्रह - 1.2.2]]</p> | <p class="HindiText"> • अवग्रह व ईहा में अंतर।- देखें [[ अवग्रह#1.2.2 | अवग्रह - 1.2.2]]</p> | ||
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<p class="HindiText">* विभाव भी उसका स्वभाव है–देखें [[ विभाव#2 | विभाव - 2]]। </p> | |||
<li class='HindiText'>[[ #3.1 | उसके सर्व भाव अज्ञानमय है।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #3.2 | उसके सर्व भाव बंध के कारण है।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #3.3 | उसके तत्त्वविचार नय प्रमाण आदि सब मिथ्या हैं।]]</li> | |||
<p class="HindiText">* उसकी देशना का सम्यक्त्व प्राप्ति में स्थान–देखें [[ लब्धि#3.4 | लब्धि - 3.4]]।</p> | |||
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<li class='HindiText'>मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि में अंतर</li> | |||
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<li class='HindiText'>[[ #4.1 | दोनों के श्रद्धान व अनुभव आदि में अंतर।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #4.2 | दोनों के तत्त्व कर्तृत्व में अंतर।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #4.3 | दोनों के पुण्य में अंतर।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #4.4 | दोनों के धर्म सेवन के अभिप्राय में अंतर।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #4.5 | दोनों की कर्मक्षपणा में अंतर ।]]</li> | |||
<li class='HindiText'>[[ #4.6 | मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्दृष्टि के आशय को नहीं समझ सकता।]]</li> | |||
<p class="HindiText">* जहाँ ज्ञानी जागता है वहाँ अज्ञानी सोता है–देखें [[ सम्यग्दृष्टि#4 | सम्यग्दृष्टि - 4]]।</p> | |||
<p class="HindiText">* मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि के राग व भोग आदि में अंतर–देखें [[ राग#6 | राग - 6]]।</p> | |||
<p class="HindiText">* सम्यग्दृष्टि की क्रियाओं में प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति अंश रहता है।–देखें [[ संवर#2 | संवर - 2]]।</p> | |||
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Revision as of 17:14, 19 January 2023
- भेद व लक्षण
- मिथ्यादृष्टि सामान्य का लक्षण।
- मिथ्यादृष्टि के भेद।
- सातिशय व घातायुष्क मिथ्यादृष्टि।
- मिथ्यादृष्टि निर्देश
- मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में कदाचित् अनंतानुबंधी के उदय के अभाव की संभावना।
- मिथ्यादृष्टि को सर्व व्यवहारधर्म व वैराग्य आदि संभव है।
- इतना होने पर भी वह मिथ्यादृष्टि व असंयत है।
- उन्हें परसमय व मिथ्यादृष्टि कहने का कारण।
- मिथ्यादृष्टि की बाह्य पहिचान।
- अवग्रह व अवाय में अंतर।
- मिथ्यादृष्टियों में औदयिक भाव की सिद्धि।
- मिथ्यादृष्टि के भावों की विशेषता
- उसके सर्व भाव अज्ञानमय है।
- उसके सर्व भाव बंध के कारण है।
- उसके तत्त्वविचार नय प्रमाण आदि सब मिथ्या हैं।
- मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि में अंतर
- दोनों के श्रद्धान व अनुभव आदि में अंतर।
- दोनों के तत्त्व कर्तृत्व में अंतर।
- दोनों के पुण्य में अंतर।
- दोनों के धर्म सेवन के अभिप्राय में अंतर।
- दोनों की कर्मक्षपणा में अंतर ।
- मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्दृष्टि के आशय को नहीं समझ सकता।
* परद्रव्य को अपना कहने से अज्ञानी कैसे हो जाता है ?–देखें नय - V.8.3।
* कुदेव कुगुरु कुधर्म की विनयादि संबंधी।–देखें विनय - 4।
* मिथ्यादृष्टि साधु–देखें साधु - 4,5।
* अधिककाल मिथ्यात्वयुक्त रहने पर सादि भी मिथ्यादृष्टि अनादिवत् हो जाता है।–देखें सम्यग्दर्शन - IV.2.6।
* मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में जीवसमास, मार्गणा स्थान आदि के स्वामित्व संबंधी 20 प्ररूपणाएँ–देखें सत् ।
* मिथ्यादृष्टियों की सत् संख्या क्षेत्र स्पर्शन काल अंतर भाव अल्पबहुत्व रूप 8 प्ररूपणाएँ–देखें वह वह नाम ।
* मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में कर्मों की बंध उदय सत्त्व संबंधी प्ररूपणाएँ–देखें वह वह नाम ।
* सभी गुणस्थानों में आय के अनुसार व्यय होने का नियम–देखें मार्गणा ।
* इसका सासादन गुणस्थान के साथ संबंध–देखें सासादन - 2।
* मिथ्यादृष्टि को दिये गये निंदनीय नाम–देखें निंदा ।
• प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी इंद्रियाँ। - देखें इंद्रिय - 1.2
• अवग्रह और दर्शन में अंतर। - देखें दर्शन
• अवग्रह व ईहा में अंतर।- देखें अवग्रह - 1.2.2
* इसके परिणाम अध:प्रवृत्तिकरणरूप होते हैं–देखें करण - 4।
* 1-3 गुणस्थानों में अशुभोपयोग प्रधान है।–देखें उपयोग - II.4.5।
* विभाव भी उसका स्वभाव है–देखें विभाव - 2।
* उसकी देशना का सम्यक्त्व प्राप्ति में स्थान–देखें लब्धि - 3.4।
* उसके व्रतों में कथंचित् व्रतपना–देखें चारित्र - 6.8।
* भोगों को नहीं सेवता हुआ भी सेवता है।–देखें राग - 6।
* जहाँ ज्ञानी जागता है वहाँ अज्ञानी सोता है–देखें सम्यग्दृष्टि - 4।
* मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि के राग व भोग आदि में अंतर–देखें राग - 6।
* सम्यग्दृष्टि की क्रियाओं में प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति अंश रहता है।–देखें संवर - 2।
बंधादि विषै बंध वर्तमान बंधक अबंध (अबद्धायुष्क) उपरत बंद (बद्धायुष्क)
बंध 1 x x
उदय 1 1 1
सत्त्व 2 1 2
बंधादि विषै | बंध वर्तमान बंधक | अबंध (अबद्धायुष्क) | उपरत बंद (बद्धायुष्क) |
---|---|---|---|
बंध | 1 | x | x |
उदय | 1 | 1 | 1 |
सत्त्व | 2 | 1 | - |
शक्ति स्थान 4 | लेश्या स्थान 14 | आयुबंध स्थान 20 | |||
---|---|---|---|---|---|
1 | शिला भेद समान | 1 | कृष्ण उत्कृष्ठ | 0 | अबंध |
2 | पृथ्वी भेद समान | 1 | कृष्ण मध्यम | 1 | नरकायु |
- | - | 2 | कृष्णादि मध्यम , उत्कृष्ठ | 1 | नरकायु |
- | - | 3 | कृष्णादि 2 मध्यम , 1 उत्कृष्ठ | 1 | नरकायु |
- | - | - | - | 2 | नरक तिर्यंचायु |
- | - | - | - | 3 | नरक, तिर्यंच, मनुष्यायु |
- | - | 4 | कृष्णादि 3 मध्यम , 1 जघन्य | 4 | सर्व |
- | - | 5 | कृष्णादि 4 मध्यम , 1 जघन्य | 4 | सर्व |
- | - | 6 | कृष्णादि 5 मध्यम , 1 जघन्य | 4 | सर्व |
3 | धूलिरेखा समान | 6 | कृष्णादि 1 जघन्य, 5 मध्यम | 4 | सर्व,सर्व |
- | - | - | - | 3 | मनुष्य, देव व तिर्यंचायु |
- | - | - | - | 2 | मनुष्य देवायु |
- | - | 5 | कृष्ण बिना 1 जघन्य, 4 मध्यम | 1 | देवायु |
- | - | 4 | कृष्ण, नील बिना 1 जघन्य, 3 मध्यम | 1 | देवायु |
- | - | 3 | पीतादि 1 उत्कृष्ठ, 2 मध्यम | 1 | देवायु |
- | - | - | - | 0 | अबंध |
- | - | 2 | पद्म, शुक्ल 1 जघन्य, 1 मध्यम | 0 | अबंध |
- | - | 1 | शुक्ल 1 मध्यम | 0 | अबंध |
- | - | 1 | शुक्ल 1 उत्कृष्ठ | 0 | अबंध |
शक्ति स्थान 4 लेश्या स्थान 14 आयुबंध स्थान 20 1. शिला भेद 1 कृष्ण उ. 0 अबंध - समान - - 1 नरकायु 2. पृथ्वी भेद 1 कुष्ण म. 1 नरकायु - समान 2 कृष्णादि म. उ. 1 नरकायु - - 3 कृष्णादि 2 म. 1 नरकायु - - - + 1 उ. 2 नरक तिर्यच्चायु - - - - 3 नरक तिर्यंच2 मनुष्यायु - - 4 कृष्णादि 3 म. 4 सर्व - - - + 1ज. - - 5 कृष्णादि 4 म. 4 सर्व - - - + 1ज. - - 6 कृष्णादि 5 म. 4 सर्व - - - + 1ज. 3 धूलिरेखा समान 6 कृष्णादि 1 ज. 4 सर्व सर्व - - +5 म. 3 मनुष्यदेव व तिर्यंचायु - - - - - 2 मनुष्य देवायु - - 5 कृष्ण बिना - - - 1 ज.+ 4 म. - - 4 कृष्ण, नील बिना 1 देवायु - - 3 पीतादि 1 उ. 1 देवायु - - - + म. 0 अबंध - - 2 पद्म, शुक्ल 1 ज. 0 अबंध - - - + 1 म. - - 1 शुक्ल 1 म. 0 अबंध 4 जलरेखा समान 1 शुक्ल 1 उ. 0 अबंध