विमल: Difference between revisions
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<li> एक चंद्र परिवार में 88 ग्रह होते हैं | उनमें से एक ग्रह का नाम विमल है |अधिक जानकारी के लिए –देखें [[ ग्रह ]]। </li> | <li> एक चंद्र परिवार में 88 ग्रह होते हैं | उनमें से एक ग्रह का नाम विमल है |अधिक जानकारी के लिए –देखें [[ ग्रह ]]। </li> | ||
<li> उत्तर क्षीरवर समुद्र का रक्षक देव–देखें [[ व्यंतर#4 | व्यंतर - 4]]। </li> | <li> उत्तर क्षीरवर समुद्र का रक्षक देव–देखें [[ व्यंतर#4.7 | व्यंतर - 4.7]]। </li> | ||
<li> सौमनस नामक गजदंत पर्वत का एक कूट–देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]]। </li> | <li> सौमनस नामक गजदंत पर्वत का एक कूट–देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]]। </li> | ||
<li> रुचक पर्वत का एक कूट–देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]।</li> | <li> रुचक पर्वत का एक कूट–देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]।</li> |
Revision as of 21:48, 30 January 2023
सिद्धांतकोष से
- विजयार्ध की उत्तर श्रेणी में 60 नगर हैं उनमें 49वां नगर –देखें विद्याधर ।
- एक चंद्र परिवार में 88 ग्रह होते हैं | उनमें से एक ग्रह का नाम विमल है |अधिक जानकारी के लिए –देखें ग्रह ।
- उत्तर क्षीरवर समुद्र का रक्षक देव–देखें व्यंतर - 4.7।
- सौमनस नामक गजदंत पर्वत का एक कूट–देखें लोक - 5.4।
- रुचक पर्वत का एक कूट–देखें लोक - 5.13।
- सौधर्म स्वर्ग का द्वि. पटल–देखें स्वर्ग - 5.3।
- भावी कालीन 22वें तीर्थंकर–देखें तीर्थंकर - 5।
- वर्तमान 13वें तीर्थंकर–देखें विमलनाथ ।
पुराणकोष से
(1) रुचकगिरि की दक्षिणदिशा का एक कूट । यशोधरादिक्कुमारी-देवी यहाँ रहती है । हरिवंशपुराण 5.709
(2) समवसरण के तीसरे कूट के पूर्वी द्वार का एक नाम । हरिवंशपुराण 57. 57
(3) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का उनचासवां नगर । हरिवंशपुराण 22-90
(4) राजा समुद्र विजय का मंत्री । हु0 50.49
(5) रुचकगिरि की पूर्वदिशा का एक कूट, चित्रादेवी की निवासभूमि । हरिवंशपुराण 5.719
(6) सौधर्म युगल का दूसरा पटल । हरिवंशपुराण 6.44 देखें सौधर्म
(7) आगामी बाईसवें तीर्थंकर । महापुराण 76.480, हरिवंशपुराण 60. 561
(8) वर्तमान काल के तेरहवें तीर्थंकर । महापुराण 2. 131, हरिवंशपुराण 1. 15 देखें विमलनाथ
(9) जंबूद्वीप के विदेहक्षेत्र में रम्य क्षेत्र का एक पर्वत । हरिवंशपुराण 60. 66
(10) क्षीरवर समुद्र का एक रक्षक देव । हरिवंशपुराण 5.642
(11) मघवा चक्रवर्ती के पूर्वभव के जीव राजा शशिप्रभ के दीक्षागुरू । पद्मपुराण 20.131-133
(12) सौमनस-पर्वत का एक कूट । हरिवंशपुराण 15.221