यमुनादत्ता: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) कुंदनगर के समुद्रसंगम की स्त्री । यह विद्युदंग की जननी थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 33.143-144 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) कुंदनगर के समुद्रसंगम की स्त्री । यह विद्युदंग की जननी थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_33#143|पद्मपुराण - 33.143-144]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) मथुरा नगरी की निकटवर्तिनी एक नदी । इसका अपर नाम कालिंदी-कलिंदकन्या था । <span class="GRef"> महापुराण 70.346-347, 395-396 </span></p> | <p id="2">(2) मथुरा नगरी की निकटवर्तिनी एक नदी । इसका अपर नाम कालिंदी-कलिंदकन्या था । <span class="GRef"> महापुराण 70.346-347, 395-396 </span></p> | ||
<p id="3">(3) मथुरा के बारह करोड़ मुद्राओं के अधिपति सेठ भानु की स्त्री । इन दोनो के सुभानु, भानुकीर्ति, भानुषेण, शूर, सूरदेव, शूरदत्त और शूरसेन से सात पुत्र थे । अंत में इसने और इसकी पुत्र-वधुओं ने जिनदत्ता आर्यिका के समीप तथा इसके पति भानु सेठ और इसके पुत्रों ने वरधर्म मुनि से दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.201-206, 243-244, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.96-100, 126-127 </span></p> | <p id="3">(3) मथुरा के बारह करोड़ मुद्राओं के अधिपति सेठ भानु की स्त्री । इन दोनो के सुभानु, भानुकीर्ति, भानुषेण, शूर, सूरदेव, शूरदत्त और शूरसेन से सात पुत्र थे । अंत में इसने और इसकी पुत्र-वधुओं ने जिनदत्ता आर्यिका के समीप तथा इसके पति भानु सेठ और इसके पुत्रों ने वरधर्म मुनि से दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.201-206, 243-244, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.96-100, 126-127 </span></p> |
Revision as of 22:27, 17 November 2023
(1) कुंदनगर के समुद्रसंगम की स्त्री । यह विद्युदंग की जननी थी । पद्मपुराण - 33.143-144
(2) मथुरा नगरी की निकटवर्तिनी एक नदी । इसका अपर नाम कालिंदी-कलिंदकन्या था । महापुराण 70.346-347, 395-396
(3) मथुरा के बारह करोड़ मुद्राओं के अधिपति सेठ भानु की स्त्री । इन दोनो के सुभानु, भानुकीर्ति, भानुषेण, शूर, सूरदेव, शूरदत्त और शूरसेन से सात पुत्र थे । अंत में इसने और इसकी पुत्र-वधुओं ने जिनदत्ता आर्यिका के समीप तथा इसके पति भानु सेठ और इसके पुत्रों ने वरधर्म मुनि से दीक्षा ले ली थी । महापुराण 71.201-206, 243-244, हरिवंशपुराण 33.96-100, 126-127