शूरसेन: Difference between revisions
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<p class="HindiText"> <p id="1"> (1) मथुरा नगरी का राजा । <span class="GRef"> महापुराण 71. 201-202, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33. 96 </span></p> | <p class="HindiText"> <p id="1"> (1) मथुरा नगरी का राजा । <span class="GRef"> महापुराण 71. 201-202, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33. 96 </span></p> | ||
<p id="2">(2) मथुरा नगरी के सेठ भानु और उसकी पत्नी यमुना सेठानी का सातवां पुत्र । चंद्रकांता इसकी स्त्री थी । इसी नगर की वज्रसृष्टि की पत्नी मंगी की पति को मारने की चेष्टा देखकर इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और यह संयमी हो गया था । अंत में यह अन्य भाइयों सहित सन्यासमरण कर प्रथम स्वर्ग में त्रायस्त्रिंश देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 71. 204-228, 243, 248, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.97-130 </span>देखें [[ शूर ]]</p> | <p id="2">(2) मथुरा नगरी के सेठ भानु और उसकी पत्नी यमुना सेठानी का सातवां पुत्र । चंद्रकांता इसकी स्त्री थी । इसी नगर की वज्रसृष्टि की पत्नी मंगी की पति को मारने की चेष्टा देखकर इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और यह संयमी हो गया था । अंत में यह अन्य भाइयों सहित सन्यासमरण कर प्रथम स्वर्ग में त्रायस्त्रिंश देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 71. 204-228, 243, 248, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.97-130 </span>देखें [[ शूर ]]</p> | ||
<p id="3">(3) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक देश । वृषभदेव के समय में स्वय इंद्र ने इसकी रचना की थी । <span class="GRef"> महापुराण 16.155 </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 101. 83 </span></p> | <p id="3">(3) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक देश । वृषभदेव के समय में स्वय इंद्र ने इसकी रचना की थी । <span class="GRef"> महापुराण 16.155 </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_101#83|पद्मपुराण - 101.83]] </span></p> | ||
Revision as of 22:35, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
मथुरा का समीपवर्ती प्रदेश। गोकुल वृंदावन और आगरा इसी में है ( महापुराण/ प्रस्तावना 20 पन्नालाल)।
पुराणकोष से
(1) मथुरा नगरी का राजा । महापुराण 71. 201-202, हरिवंशपुराण 33. 96
(2) मथुरा नगरी के सेठ भानु और उसकी पत्नी यमुना सेठानी का सातवां पुत्र । चंद्रकांता इसकी स्त्री थी । इसी नगर की वज्रसृष्टि की पत्नी मंगी की पति को मारने की चेष्टा देखकर इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और यह संयमी हो गया था । अंत में यह अन्य भाइयों सहित सन्यासमरण कर प्रथम स्वर्ग में त्रायस्त्रिंश देव हुआ । महापुराण 71. 204-228, 243, 248, हरिवंशपुराण 33.97-130 देखें शूर
(3) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक देश । वृषभदेव के समय में स्वय इंद्र ने इसकी रचना की थी । महापुराण 16.155 पद्मपुराण - 101.83