मेघवाहन: Difference between revisions
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<li> एक विद्याधर । यह भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनूपुर नगर का राजा था । प्रीतिमती इसकी रानी तथा घनवाहन इसका पुत्र था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 15.4-8 </span></li> | <li> एक विद्याधर । यह भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनूपुर नगर का राजा था । प्रीतिमती इसकी रानी तथा घनवाहन इसका पुत्र था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 15.4-8 </span></li> | ||
<li> विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के शिवमंदिर नगर का राजा । इसकी विमला रानी और इससे प्रसूता कनकमाला पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 63.116-117 </span></li> | <li> विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के शिवमंदिर नगर का राजा । इसकी विमला रानी और इससे प्रसूता कनकमाला पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 63.116-117 </span></li> | ||
<li> भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी के चक्रवालनगर का राजा । यह पूर्णघन का पुत्र था । इसका अपरनाम तोयदवाहन था सहस्रनयन और पूर्णघन के बीच हुए युद्ध में पिता पूर्णघन के मारे जाने पर सहस्रनयन ने इसे चक्रवालनगर से निर्वासित कर दिया था । विद्याधरों के पीछा करने पर यह अजितनाथ तीर्थंकर की शरण में गया वहाँ इसका शत्रु सहस्रनयन भी पहुँचा था । यहाँ अजित जिनका प्रभामंडल देखकर दोनों वैरभाव भूल गये थे । राक्षसों के इंद्र भीम और सुभीम ने संतुष्ट होकर इसे लंका में रहने का परामर्श देते हुए देवाधिष्ठित हार और अलंकारोदय नगर तथा राक्षसी-विद्या प्रदान की थी । अंत में इस विद्याधर ने महाराक्षस पुत्र को राज्य सौंपकर अजित जिनके पास दीक्षा ले ली थी । इसके साथ अन्य एक सौ दस विद्याधर भी वैराग्य प्राप्त कर संयमी हुए और मोक्ष गये । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5. 76-77, 85-95, 160-167, 239-240 </span></li> | <li> भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी के चक्रवालनगर का राजा । यह पूर्णघन का पुत्र था । इसका अपरनाम तोयदवाहन था सहस्रनयन और पूर्णघन के बीच हुए युद्ध में पिता पूर्णघन के मारे जाने पर सहस्रनयन ने इसे चक्रवालनगर से निर्वासित कर दिया था । विद्याधरों के पीछा करने पर यह अजितनाथ तीर्थंकर की शरण में गया वहाँ इसका शत्रु सहस्रनयन भी पहुँचा था । यहाँ अजित जिनका प्रभामंडल देखकर दोनों वैरभाव भूल गये थे । राक्षसों के इंद्र भीम और सुभीम ने संतुष्ट होकर इसे लंका में रहने का परामर्श देते हुए देवाधिष्ठित हार और अलंकारोदय नगर तथा राक्षसी-विद्या प्रदान की थी । अंत में इस विद्याधर ने महाराक्षस पुत्र को राज्य सौंपकर अजित जिनके पास दीक्षा ले ली थी । इसके साथ अन्य एक सौ दस विद्याधर भी वैराग्य प्राप्त कर संयमी हुए और मोक्ष गये । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#76|पद्मपुराण - 5.76-77]], 85-95, 160-167, 239-240 </span></li> | ||
<li> दशानन और रानी मंदोदरी का पुत्र । इसका जन्म नाना के यहाँ हुआ था । रावण पक्ष से युद्ध करते हुए रामपक्ष के योद्धा द्वारा बांध लिये जाने पर इसने बंधनों से मुक्त होने पर निर्ग्रंथ साधु होकर पाणिपात्र से आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा की थी । रावण का दाह संस्कार कर पद्म सरोवर पर राम के द्वारा मुक्त किये जाने पर लक्ष्मण ने इसे पूर्ववत् रहने के लिए आग्रह किया था । इसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार निरभिलाषा प्रकट करके दीक्षा ले ली थी । अंत में यह केवली होकर मुक्त हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 8.158, 78.8-9, 14-15, 24-26, 30-31, 81-82, 80.8-9 </span></li> | <li> दशानन और रानी मंदोदरी का पुत्र । इसका जन्म नाना के यहाँ हुआ था । रावण पक्ष से युद्ध करते हुए रामपक्ष के योद्धा द्वारा बांध लिये जाने पर इसने बंधनों से मुक्त होने पर निर्ग्रंथ साधु होकर पाणिपात्र से आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा की थी । रावण का दाह संस्कार कर पद्म सरोवर पर राम के द्वारा मुक्त किये जाने पर लक्ष्मण ने इसे पूर्ववत् रहने के लिए आग्रह किया था । इसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार निरभिलाषा प्रकट करके दीक्षा ले ली थी । अंत में यह केवली होकर मुक्त हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_8#158|पद्मपुराण -8. 158]], 78.8-9, 14-15, 24-26, 30-31, 81-82, 80.8-9 </span></li> | ||
<li> राम का सामना । यह रावण की सेना से युद्ध करने ससैन्य आया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 58.18-19 </span></li> | <li> राम का सामना । यह रावण की सेना से युद्ध करने ससैन्य आया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_58#18|पद्मपुराण - 58.18-19]] </span></li> | ||
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Revision as of 22:27, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- पद्मपुराण/5/श्लोक नं.
−‘‘सगर चक्रवर्ती के ससुर सुलोचन के प्रतिद्वंद्वी पूर्ण घन का पुत्र था । (87)। सुलोचना के पुत्र द्वारा परास्त होकर भगवान् अजितनाथ के समवशरण में गया । (87-88)। वहाँ राक्षसों के इंद्र भीम व सुभीम ने प्रसन्न होकर उसको लंका व पाताल लंका राज्य तथा राक्षसी विद्या प्रदान की । (161-167)। अंत में अजितनाथ भगवान् से दीक्षा ले ली । (239-240)। - पद्मपुराण/सर्ग/श्लोक
- ‘‘रावण का पुत्र था । (8/158)। लक्ष्मण द्वारा रावण के मारे जाने पर विरक्त हो दीक्षा धारण कर ली । (78/81-82)।’’
पुराणकोष से
- जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के अग देश की चंपा नगरी का एक कुरुवंशी राजा । महापुराण 72.227, हरिवंशपुराण 64.4, पांडवपुराण 23.78-79
- विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के सुरेंद्रकांतार नगर का राजा । मेघमालिनी इसकी रानी, विद्युत्प्रभ पुत्र तथा ज्योतिर्माला पुत्री थी । महापुराण 62.71-72 पांडवपुराण 4.29-30
- भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के व्योमवल्लभ नगर का नृप एक विद्याधर । राजा मेघनाद इसके पिता तथा रानी मेघमालिनी इसकी जननी थी । महापुराण 63.29-30, महापुराण0 5.5-6
- एक विद्याधर । यह भरतक्षेत्र के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनूपुर नगर का राजा था । प्रीतिमती इसकी रानी तथा घनवाहन इसका पुत्र था । पांडवपुराण 15.4-8
- विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के शिवमंदिर नगर का राजा । इसकी विमला रानी और इससे प्रसूता कनकमाला पुत्री थी । महापुराण 63.116-117
- भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी के चक्रवालनगर का राजा । यह पूर्णघन का पुत्र था । इसका अपरनाम तोयदवाहन था सहस्रनयन और पूर्णघन के बीच हुए युद्ध में पिता पूर्णघन के मारे जाने पर सहस्रनयन ने इसे चक्रवालनगर से निर्वासित कर दिया था । विद्याधरों के पीछा करने पर यह अजितनाथ तीर्थंकर की शरण में गया वहाँ इसका शत्रु सहस्रनयन भी पहुँचा था । यहाँ अजित जिनका प्रभामंडल देखकर दोनों वैरभाव भूल गये थे । राक्षसों के इंद्र भीम और सुभीम ने संतुष्ट होकर इसे लंका में रहने का परामर्श देते हुए देवाधिष्ठित हार और अलंकारोदय नगर तथा राक्षसी-विद्या प्रदान की थी । अंत में इस विद्याधर ने महाराक्षस पुत्र को राज्य सौंपकर अजित जिनके पास दीक्षा ले ली थी । इसके साथ अन्य एक सौ दस विद्याधर भी वैराग्य प्राप्त कर संयमी हुए और मोक्ष गये । पद्मपुराण - 5.76-77, 85-95, 160-167, 239-240
- दशानन और रानी मंदोदरी का पुत्र । इसका जन्म नाना के यहाँ हुआ था । रावण पक्ष से युद्ध करते हुए रामपक्ष के योद्धा द्वारा बांध लिये जाने पर इसने बंधनों से मुक्त होने पर निर्ग्रंथ साधु होकर पाणिपात्र से आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा की थी । रावण का दाह संस्कार कर पद्म सरोवर पर राम के द्वारा मुक्त किये जाने पर लक्ष्मण ने इसे पूर्ववत् रहने के लिए आग्रह किया था । इसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार निरभिलाषा प्रकट करके दीक्षा ले ली थी । अंत में यह केवली होकर मुक्त हुआ । पद्मपुराण -8. 158, 78.8-9, 14-15, 24-26, 30-31, 81-82, 80.8-9
- राम का सामना । यह रावण की सेना से युद्ध करने ससैन्य आया था । पद्मपुराण - 58.18-19