Test5: Difference between revisions
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<li class="HindiText">[[ #1.7 | निक्षेपों की अपेक्षा क्षेत्र के भेद।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[ #1.8 | स्वपर क्षेत्र के लक्षण।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[ #1.9 | सामान्य विशेष क्षेत्र के लक्षण।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[ #1.10 | क्षेत्र लोक व नोक्षेत्र के लक्षण।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[ #1.11 | स्वस्थनादि क्षेत्रपदों के लक्षण।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText"> समुद्घातों में क्षेत्र विस्तार संबंधी—देखें [[ वह वह नाम ]]।<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[ #1.12 | निष्कुट क्षेत्र का लक्षण।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText"> निक्षेपोंरूप क्षेत्र के लक्षण।–देखें [[ निक्षेप ]]।<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[ #1.13 | नोआगम क्षेत्र के लक्षण।]]<br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong> [[क्षेत्र_02#2 |क्षेत्र सामान्य निर्देश ]]</strong><br /> | |||
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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_02#2.1 | क्षेत्र व अधिकरण में अंतर।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_02#2.2 | क्षेत्र व स्पर्शन में अंतर।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_02#2.3 | वीतरागियों व सरागियों के स्वक्षेत्र में अंतर।]]<br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong>[[क्षेत्र_03#3 | क्षेत्र प्ररूपणा विषयक कुछ नियम ]]</strong><br /> | |||
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< | <li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.1 | गुणस्थानों में संभव पदों की अपेक्षा।]]<br /> | ||
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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.2 | गतिमार्गणा में संभव पदों की अपेक्षा।]]<br /> | |||
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< | <li class="HindiText"> नरक, तिर्यंच, मनुष्य, भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष, वैमानिक, व लौकांतिक देवों का लोक में अवस्थान।–देखें [[ वह वह नाम ]]।<br /> | ||
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<li class="HindiText"> जलचर जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें [[ तिर्यंच#3 | तिर्यंच - 3]]।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> भोग व कर्मभूमि में जीवों का अवस्थान—देखें [[ भूमि#8 | भूमि - 8]]।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> मुक्त जीवों का लोक में अवस्थान—देखें [[ मोक्ष#5 | मोक्ष - 5]]।<br /> | |||
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< | <li><span class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3 | इंद्रियादि मार्गणाओं में संभव पदों की अपेक्षा]]— | ||
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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.1 | इंद्रियमार्गणा; ]]</li> | |||
<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.2 | कायमार्गणा; ]]</li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.3| योगमार्गणा; ]]</li> | |||
<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.4 | वेद मार्गणा;]] </li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.5 | ज्ञानमार्गणा;]] </li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.6 | संयम मार्गणा;]] </li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.7 | सम्यक्त्व मार्गणा;]] </li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.8 | आहारक मार्गणा।]]<br /> | |||
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<li class="HindiText"> एकेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान—देखें [[ स्थावर ]]।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> विकलेंद्रिय व पंचेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें [[ तिर्यंच#3 | तिर्यंच - 3]]।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> तेज व अप्कायिक जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें [[ काय#2.5 | काय - 2.5 ]]<br /> | |||
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<li class="HindiText"> त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, बादर, जीवों का लोक में अवस्थान–देखें [[ वह वह नाम ]]।<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.4 | मारणांतिक समुद्घात के क्षेत्र संबंधी दृष्टिभेद।]] <br /> | |||
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< | <li><span class="HindiText"><strong> [[ क्षेत्र_04 -1#4 | क्षेत्र प्ररूपणाएँ ]]</strong> <br /> | ||
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<li class="HindiText">[[ क्षेत्र_04 -1#4.1 | सारणी में प्रयुक्त संकेत परिचय। ]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[ क्षेत्र_04 -2#1 | जीवों के क्षेत्र की ओघ प्ररूपणा। ]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[ क्षेत्र_-_गति#4 -3 | जीवों के क्षेत्र की आदेश प्ररूपणा। ]]<br /> | |||
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<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.1 | गति मार्गणा ; ]]</li> | |||
<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.2 | इंद्रिय मार्गणा ; ]]</li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.3| काय मार्गणा ; ]]</li> | |||
<li class="HindiText">[[क्षेत्र_03#3.3.4 | वेद मार्गणा ;]] </li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.5 | कषाय मार्गणा ;]] </li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.6 | संयम मार्गणा ;]] </li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.7 | दर्शन मार्गणा ;]] </li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.8 | लेश्या मार्गणा ।]]</li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.8 | भव्यत्व मार्गणा ।]]</li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.8 | सम्यक्त्व मार्गणा ।]]</li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.8 | संज्ञी मार्गणा ।]]</li> | |||
<li class="HindiText"> [[क्षेत्र_03#3.3.8 | आहारक मार्गणा ।]]<br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong> [[ क्षेत्र_04 -4# | अन्य प्ररूपणाएँ ]]</strong> <br /> | |||
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<li class="HindiText"> अष्टकर्म के चतु:बंध की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> अष्टकर्म सत्त्व के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> मोहनीय के सत्त्व के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> पाँचों शरीरों के योग्य स्कंधों की संघातन परिशातन कृति के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> पाँच शरीरों में 2, 3, 4 आदि भंगों के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> 23 प्रकार की वर्गणाओं की जघन्य, उत्कृष्ट क्षेत्र प्ररूपणा।<br /> | |||
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<li class="HindiText"> प्रयोग समवदान, अध:, तप, ईयापथ व कृतिकर्म इन षट् कर्मों के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।<br /> | |||
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Revision as of 15:06, 14 April 2023
- भेद व लक्षण
- क्षेत्र सामान्य का लक्षण।
- क्षेत्रानुगम का लक्षण।
- क्षेत्र जीव के अर्थ में।
- क्षेत्र के भेद (सामान्य विशेष)।
- लोक की अपेक्षा क्षेत्र के भेद।
- क्षेत्र के भेद स्वस्थानादि।
- निक्षेपों की अपेक्षा क्षेत्र के भेद।
- स्वपर क्षेत्र के लक्षण।
- सामान्य विशेष क्षेत्र के लक्षण।
- क्षेत्र लोक व नोक्षेत्र के लक्षण।
- स्वस्थनादि क्षेत्रपदों के लक्षण।
- समुद्घातों में क्षेत्र विस्तार संबंधी—देखें वह वह नाम ।
- निक्षेपोंरूप क्षेत्र के लक्षण।–देखें निक्षेप ।
- क्षेत्र सामान्य का लक्षण।
- क्षेत्र सामान्य निर्देश
- क्षेत्र प्ररूपणा विषयक कुछ नियम
- नरक, तिर्यंच, मनुष्य, भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष, वैमानिक, व लौकांतिक देवों का लोक में अवस्थान।–देखें वह वह नाम ।
- जलचर जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें तिर्यंच - 3।
- भोग व कर्मभूमि में जीवों का अवस्थान—देखें भूमि - 8।
- मुक्त जीवों का लोक में अवस्थान—देखें मोक्ष - 5।
- एकेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान—देखें स्थावर ।
- विकलेंद्रिय व पंचेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें तिर्यंच - 3।
- तेज व अप्कायिक जीवों का लोक में अवस्थान।–देखें काय - 2.5
- त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, बादर, जीवों का लोक में अवस्थान–देखें वह वह नाम ।
- नरक, तिर्यंच, मनुष्य, भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष, वैमानिक, व लौकांतिक देवों का लोक में अवस्थान।–देखें वह वह नाम ।
- क्षेत्र प्ररूपणाएँ
- अन्य प्ररूपणाएँ
- अष्टकर्म के चतु:बंध की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- अष्टकर्म सत्त्व के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- मोहनीय के सत्त्व के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- पाँचों शरीरों के योग्य स्कंधों की संघातन परिशातन कृति के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- पाँच शरीरों में 2, 3, 4 आदि भंगों के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- 23 प्रकार की वर्गणाओं की जघन्य, उत्कृष्ट क्षेत्र प्ररूपणा।
- प्रयोग समवदान, अध:, तप, ईयापथ व कृतिकर्म इन षट् कर्मों के स्वामी जीवों की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।
- अष्टकर्म के चतु:बंध की अपेक्षा ओघ आदेश प्ररूपणा।