चक्षुष्मान्: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) आठवें मनु/कुलकर । ये सातवें कुलकर विपुलवाहन के पुत्र थे तथा नौवें कुलकर यशस्वी के पिता । इनके पूर्व माता-पिता पुत्र का मुख तथा चक्षु देखे बिना ही मर जाते थे । इनके समय से वे पुत्र का मुख और चक्षु देखकर मरने लगे थे । इससे उत्पन्न प्रजा-भय को दूर करने से प्रजा ने इन्हें इस नाम से संबोधित किया था । ये बहुत काल तक भोग भोगकर स्वर्ग गये । <span class="GRef"> महापुराण 3. 120-125, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.157-160, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2. 106 </span><span class="GRef"> पद्मपुराण </span>में इन्हें सीमंधर के बाद हुए बताया है । इन्होंने सूर्य और चंद्र देखकर भयभीत प्रजा के भय का निवारण किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण </span>2.79-85</p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) आठवें मनु/कुलकर । ये सातवें कुलकर विपुलवाहन के पुत्र थे तथा नौवें कुलकर यशस्वी के पिता । इनके पूर्व माता-पिता पुत्र का मुख तथा चक्षु देखे बिना ही मर जाते थे । इनके समय से वे पुत्र का मुख और चक्षु देखकर मरने लगे थे । इससे उत्पन्न प्रजा-भय को दूर करने से प्रजा ने इन्हें इस नाम से संबोधित किया था । ये बहुत काल तक भोग भोगकर स्वर्ग गये । <span class="GRef"> महापुराण 3. 120-125, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_7#157|हरिवंशपुराण - 7.157-160]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2. 106 </span><span class="GRef"> पद्मपुराण </span>में इन्हें सीमंधर के बाद हुए बताया है । इन्होंने सूर्य और चंद्र देखकर भयभीत प्रजा के भय का निवारण किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण </span>2.79-85</p> | ||
<p id="2">(2) मानुषोतर पर्वत का रक्षक देव । <span class="GRef"> महापुराण 5.639 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) मानुषोतर पर्वत का रक्षक देव । <span class="GRef"> महापुराण 5.639 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- दक्षिण मानुषोत्तर पर्वत का रक्षक व्यंतर देव–देखें व्यंतर ।4।
- अपर पुष्करार्ध का रक्षक व्यंतर देव–देखें व्यंतर 4.7 ।
- आठवें कुलकर–देखें सोलह कुलकर निर्देश ।9।
पुराणकोष से
(1) आठवें मनु/कुलकर । ये सातवें कुलकर विपुलवाहन के पुत्र थे तथा नौवें कुलकर यशस्वी के पिता । इनके पूर्व माता-पिता पुत्र का मुख तथा चक्षु देखे बिना ही मर जाते थे । इनके समय से वे पुत्र का मुख और चक्षु देखकर मरने लगे थे । इससे उत्पन्न प्रजा-भय को दूर करने से प्रजा ने इन्हें इस नाम से संबोधित किया था । ये बहुत काल तक भोग भोगकर स्वर्ग गये । महापुराण 3. 120-125, हरिवंशपुराण - 7.157-160, पांडवपुराण 2. 106 पद्मपुराण में इन्हें सीमंधर के बाद हुए बताया है । इन्होंने सूर्य और चंद्र देखकर भयभीत प्रजा के भय का निवारण किया था । पद्मपुराण 2.79-85
(2) मानुषोतर पर्वत का रक्षक देव । महापुराण 5.639