अणुव्रत: Difference between revisions
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<span class="GRef"> [[ ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 52 | रत्नकरंड श्रावकाचार/52 ]], 72 </span><span class="SanskritGatha"> प्राणातिपातवितथव्याहारस्तेयकाममूर्च्छेभ्यः। स्थूलेभ्यः पापेभ्यो व्युपरमणमणुव्रतं भवति।52। पंचानां पापानां हिंसादीनां मनोवचकायैः । कृतकारितानुमोदैस्त्यागस्तु महाव्रतं महतां।72।</span> = <span class="HindiText">हिंसा, असत्य, चोरी, काम (कुशील) और मूर्च्छा अर्थात् परिग्रह इन पाँच स्थूल पापों से विरक्त होना <b>अणुव्रत</b> है।52। हिंसादिक पाँचों पापों का मन, वचन, काय व कृत कारित अनुमोदना से त्याग करना महापुरुषों का महाव्रत है।53। </span><br /> | <span class="GRef"> [[ ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 52 | रत्नकरंड श्रावकाचार/52 ]], [[ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 72 | 72 ]] </span><span class="SanskritGatha"> प्राणातिपातवितथव्याहारस्तेयकाममूर्च्छेभ्यः। स्थूलेभ्यः पापेभ्यो व्युपरमणमणुव्रतं भवति।52। पंचानां पापानां हिंसादीनां मनोवचकायैः । कृतकारितानुमोदैस्त्यागस्तु महाव्रतं महतां।72।</span> = <span class="HindiText">हिंसा, असत्य, चोरी, काम (कुशील) और मूर्च्छा अर्थात् परिग्रह इन पाँच स्थूल पापों से विरक्त होना <b>अणुव्रत</b> है।52। हिंसादिक पाँचों पापों का मन, वचन, काय व कृत कारित अनुमोदना से त्याग करना महापुरुषों का महाव्रत है।53। </span><br /> | ||
<div class="HindiText"> <p>- देखें [[ व्रत ]]।</p> | <div class="HindiText"> <p>- देखें [[ व्रत ]]।</p> |
Revision as of 14:42, 18 June 2023
सिद्धांतकोष से
तत्त्वार्थसूत्र/7/2 देशसर्वतोऽणुमहती।2। = देशत्यागरूप अणुव्रत और सर्वत्यागरूप महाव्रत ऐसे दो प्रकार व्रत हैं। ( रत्नकरंड श्रावकाचार /50 )।
रत्नकरंड श्रावकाचार/52 , 72 प्राणातिपातवितथव्याहारस्तेयकाममूर्च्छेभ्यः। स्थूलेभ्यः पापेभ्यो व्युपरमणमणुव्रतं भवति।52। पंचानां पापानां हिंसादीनां मनोवचकायैः । कृतकारितानुमोदैस्त्यागस्तु महाव्रतं महतां।72। = हिंसा, असत्य, चोरी, काम (कुशील) और मूर्च्छा अर्थात् परिग्रह इन पाँच स्थूल पापों से विरक्त होना अणुव्रत है।52। हिंसादिक पाँचों पापों का मन, वचन, काय व कृत कारित अनुमोदना से त्याग करना महापुरुषों का महाव्रत है।53।
- देखें व्रत ।
पुराणकोष से
गृहस्थ दशा में पाँच महाव्रतों का एकदेश पालन करना । अणुव्रत पाँच हैं― अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और इच्छापरिमाणुव्रत । इन पांचों की पांच-पांच भावनाएँ तथा अतिचार भी होते हैं । जो गृहस्थ भावनाओं के साथ इनका पालन निरतिचार करते हैं वे सम्यग्दर्शन की विशुद्धि पूर्वक परंपरा से मोक्ष पाते हैं । महापुराण 10.163-164,39.4, पद्मपुराण 11.38-39, 85. 18, हरिवंशपुराण 18.46, 58.116, 138-142, 163-176