गुणव्रत: Difference between revisions
From जैनकोष
Line 3: | Line 3: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong class="HindiText"> लक्षण</strong><BR> <span class="GRef"> [[ ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 67 | रत्नकरंड श्रावकाचार/67 ]] </span><span class="SanskritText"> अनुबृंहणाद् गुणानामाख्यायंति गुणव्रतान्यार्या:।67।</span>=<span class="HindiText">गुणों को बढ़ाने के कारण आचार्यगण इन व्रतों को गुणव्रत कहते हैं।<BR></span> <span class="GRef"> सागार धर्मामृत/5/1 </span><span class="SanskritText">यद्गुणायोपकारायाणुव्रतानां व्रतानि तत् । गुणव्रतानि।</span>=<span class="HindiText">ये तीन व्रत अणुव्रतों के उपकार करने वाले हैं, इसलिए इन्हें गुणव्रत कहते हैं।</span> </li> | <li><strong class="HindiText"> लक्षण</strong><BR> <span class="GRef"> [[ ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 67 | रत्नकरंड श्रावकाचार/67 ]] </span><span class="SanskritText"> अनुबृंहणाद् गुणानामाख्यायंति गुणव्रतान्यार्या:।67।</span>=<span class="HindiText">गुणों को बढ़ाने के कारण आचार्यगण इन व्रतों को गुणव्रत कहते हैं।<BR></span> <span class="GRef"> सागार धर्मामृत/5/1 </span><span class="SanskritText">यद्गुणायोपकारायाणुव्रतानां व्रतानि तत् । गुणव्रतानि।</span>=<span class="HindiText">ये तीन व्रत अणुव्रतों के उपकार करने वाले हैं, इसलिए इन्हें गुणव्रत कहते हैं।</span> </li> | ||
<li><strong class="HindiText"> भेद</strong><BR> <span class="GRef"> भगवती आराधना/2081 </span><span class="PrakritText">जं च दिसावेरमणं अणत्थदंडेहिं जं च वेरमणं। देसावगासियं पि य गुणव्वयाइं भवे ताइं।2081।</span>=<span class="HindiText">दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदंडव्रत ये तीन गुणव्रत हैं। (<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/21/359/6 </span>); (<span class="GRef"> वसुनंदी श्रावकाचार/214-216 </span>)।<BR></span> <span class="GRef"> रत्नकरंड श्रावकाचार/67 </span><span class="SanskritText"> दिग्व्रतमनर्थदंडव्रतं च भोगोपभोगपरिमाणं। अनुबृंहणाद् गुणानामाख्ययांति गुणव्रतान्यार्या:।</span>=<span class="HindiText">दिग्व्रत, अनर्थदंडव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत ये तीनों गुणव्रत कहे गये हैं।</span><br> | <li><strong class="HindiText"> भेद</strong><BR> <span class="GRef"> भगवती आराधना/2081 </span><span class="PrakritText">जं च दिसावेरमणं अणत्थदंडेहिं जं च वेरमणं। देसावगासियं पि य गुणव्वयाइं भवे ताइं।2081।</span>=<span class="HindiText">दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदंडव्रत ये तीन गुणव्रत हैं। (<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/21/359/6 </span>); (<span class="GRef"> वसुनंदी श्रावकाचार/214-216 </span>)।<BR></span> <span class="GRef"> [[ ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 67 | रत्नकरंड श्रावकाचार/67 ]] </span><span class="SanskritText"> दिग्व्रतमनर्थदंडव्रतं च भोगोपभोगपरिमाणं। अनुबृंहणाद् गुणानामाख्ययांति गुणव्रतान्यार्या:।</span>=<span class="HindiText">दिग्व्रत, अनर्थदंडव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत ये तीनों गुणव्रत कहे गये हैं।</span><br> | ||
<span class="GRef">महा पुराण/10/165</span><span class="SanskritGatha"> दिग्देशानर्थदंडेभ्यो विरति: स्यादणुव्रतम् । भोगोपभोगसंख्यानमप्याहुस्तद्गुणव्रतम् ।165।</span> =<span class="HindiText">दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदंडव्रत ये तीन गुणव्रत हैं। कोई कोई आचार्य भोगोपभोग परिमाण व्रत को भी गुणव्रत कहते हैं। [देशव्रत को शिक्षाव्रतों में शामिल करते हैं]।165। </span> </li> | <span class="GRef">महा पुराण/10/165</span><span class="SanskritGatha"> दिग्देशानर्थदंडेभ्यो विरति: स्यादणुव्रतम् । भोगोपभोगसंख्यानमप्याहुस्तद्गुणव्रतम् ।165।</span> =<span class="HindiText">दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदंडव्रत ये तीन गुणव्रत हैं। कोई कोई आचार्य भोगोपभोग परिमाण व्रत को भी गुणव्रत कहते हैं। [देशव्रत को शिक्षाव्रतों में शामिल करते हैं]।165। </span> </li> | ||
</ol> | </ol> |
Revision as of 15:43, 18 June 2023
सिद्धांतकोष से
- लक्षण
रत्नकरंड श्रावकाचार/67 अनुबृंहणाद् गुणानामाख्यायंति गुणव्रतान्यार्या:।67।=गुणों को बढ़ाने के कारण आचार्यगण इन व्रतों को गुणव्रत कहते हैं।
सागार धर्मामृत/5/1 यद्गुणायोपकारायाणुव्रतानां व्रतानि तत् । गुणव्रतानि।=ये तीन व्रत अणुव्रतों के उपकार करने वाले हैं, इसलिए इन्हें गुणव्रत कहते हैं। - भेद
भगवती आराधना/2081 जं च दिसावेरमणं अणत्थदंडेहिं जं च वेरमणं। देसावगासियं पि य गुणव्वयाइं भवे ताइं।2081।=दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदंडव्रत ये तीन गुणव्रत हैं। ( सर्वार्थसिद्धि/7/21/359/6 ); ( वसुनंदी श्रावकाचार/214-216 )।
रत्नकरंड श्रावकाचार/67 दिग्व्रतमनर्थदंडव्रतं च भोगोपभोगपरिमाणं। अनुबृंहणाद् गुणानामाख्ययांति गुणव्रतान्यार्या:।=दिग्व्रत, अनर्थदंडव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत ये तीनों गुणव्रत कहे गये हैं।
महा पुराण/10/165 दिग्देशानर्थदंडेभ्यो विरति: स्यादणुव्रतम् । भोगोपभोगसंख्यानमप्याहुस्तद्गुणव्रतम् ।165। =दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदंडव्रत ये तीन गुणव्रत हैं। कोई कोई आचार्य भोगोपभोग परिमाण व्रत को भी गुणव्रत कहते हैं। [देशव्रत को शिक्षाव्रतों में शामिल करते हैं]।165।
पुराणकोष से
गृहस्थ के तीन व्रत — दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदंडव्रत । महापुराण 10. 165, हरिवंशपुराण 2.134, 18.45-46 पद्मपुराण के अनुसार दिग्व्रत, अनर्थदंडव्रत तथा भोगोपभोग परिमाणव्रत ये तीन गुणव्रत है । पद्मपुराण 14.198