गुणश्रेणी
From जैनकोष
धवला 12/4,2,7,175/80/6 गुणो गुणगारो, तस्स सेडी ओली पंती गुणसेडी णाम। दंसणमोहुवसामयस्स पढमसमए णिज्जिण्णदव्वं थोवं। विदियसमए णिज्जिण्णदव्वमसंखेज्जगुणं। तदियसमए णिज्जिण्णदव्वमसंखेज्जगुणं। एवं णेयव्वं जाव दंसणमोहउवसामगचरिमसमओ त्ति। एसा गुणागारपंत्ती गुणसेडि त्ति भणिदं। गुणसेडीए गुणो गुणसेडिगुणो, गुणसेडिगुणगारो त्ति भणिदं होदि। = गुण शब्द का अर्थ गुणकार है। तथा उसकी श्रेणी, आवलि या पंक्ति का नाम गुणश्रेणी है। दर्शनमोह का उपशम करने वाले जीव का प्रथम समय में निर्जरा को प्राप्त होने वाला द्रव्य स्तोक है। उसके द्वितीय समय में निर्जरा को प्राप्त हुआ द्रव्य असंख्यात गुणा है। उससे तीसरे समय में निर्जरा को प्राप्त हुआ द्रव्य असंख्यात गुणा है। इस प्रकार दर्शनमोह उपशामक के अंतिम समय तक ले जाना चाहिए। यह गुणकार पंक्ति गुणश्रेणि है। यह उक्त कथन का तात्पर्य है। तथा गुणश्रेणि का गुण गुणश्रेणिगुण अर्थात् गुणश्रेणि गुणकार कहलाता है।
देखें संक्रमण - 8।