पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 110 - समय-व्याख्या: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
एदे जीवणिकाया पंचविहा पुढविकाइयादीया । (110)
मणपरिणामविराहिदा जीवा एगेंदिया भणिया ॥120॥
अर्थ:
ये पृथ्वीकायिक आदि पाँच प्रकार के जीव-निकाय मन परिणाम से विरहित एकेन्द्रिय जीव हैं ।
समय-व्याख्या:
पृथिवीकायिकादीनां पञ्चानामेकेन्द्रियत्वनियमोऽयम् ।
पृथिवीकायिकादयो हि जीवाः स्पर्शनेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेन्द्रियावरणोदयेनोइन्द्रियावरणोदये च सत्येकेन्द्रिया अमनसो भवन्तीति ॥११०॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, पृथ्वीकायिक आदि पाँच (-पंचविध) जीवों के एकेन्द्रियपने का नियम है ।
पृथ्वीकायिक आदि जीव, स्पर्शनेन्द्रिय के (भाव-स्पर्शनेन्द्रिय के) आवरण के क्षयोपशम के कारण तथा शेष इंद्रियों के (चार भावेन्द्रियों के) आवरण का उदय तथा मन के (भाव-मन के) आवरण का उदय होने से, मन रहित एकेन्द्रिय है ॥११०॥