ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 111 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
अंडेसु पवड्ढंता गब्भत्था माणुसा य मुच्छगया । (111)
जारिसया तारिसया जीवा एगेंदिया णेया ॥121॥
अर्थ:
अण्डे में प्रवर्धमान (बढ़ते हुए),गर्भस्थ और मूर्छा को प्राप्त मनुष्य जैसे हैं; उसीप्रकार एकेन्द्रिय जीव जानना चाहिए ।
समय-व्याख्या:
एकेन्द्रियाणां चैतन्यास्तित्वे द्रष्टान्तोपन्यासोऽयम् ।
अण्डान्तर्लीनानां, गर्भस्थानां, मूर्च्छितानां च बुद्धिपूर्वकव्यापारादर्शनेऽपि येन प्रकारेणजीवत्वं निश्चीयते, तेन प्रकारेणैकेन्द्रियाणामपि, उभयेषामपि बुद्धिपूर्वकव्यापारा-दर्शनस्य समानत्वादिति ॥११३॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, एकेन्द्रियों को चैतन्य का अस्तित्त्व होने सम्बन्धी दृष्टांत का कथन है ।
अंडे में रहे हुए, गर्भ में रहे हुए और मूर्छा पाए हुए (प्राणियों) के जीवत्व का, उन्हें बुद्धिपूर्वक व्यापार नहीं देखा जाता तथापि, जिस प्रकार निश्चय किया जाता है, उसी प्रकार एकेन्द्रियों के जीवत्व का भी निश्चय किया जाता है, क्यों कि दोनों में बुद्धिपूर्वक व्यापार का १अदर्शन समान है ॥१११॥
१अदर्शन= दृष्टिगोचर नहीं होना ।