पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 7 - समय-व्याख्या: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
अण्णोण्णं पविसंता देंता ओगासमण्णमण्णस्स ।
मेलंता वि य णिच्चं सगसब्भावं ण विजहंति ॥7॥
अर्थ:
वे परस्पर एक दूसरे में प्रवेश करते हैं, एक दूसरे को अवकाश देते हैं, परस्पर में मिलते भी हैं; तथापि सदैव अपने स्वभाव को नहीं छाे़डते हैं।
समय-व्याख्या:
अत्र पण्णं द्रव्याणां परस्परमत्यन्तसंकरेऽपि प्रतिनियतस्वरूपादप्रच्यवनमुक्तम् । अंत एव तेषां परिणामवत्त्वेऽपि प्राग्नित्यत्वमुक्तम् । अंत एव च न तेषामेकत्वापत्तिनं च जीवकर्मणोर्व्यवहारनयादेशादेकत्वेऽपि परस्परस्वरूपोपादानमिति ॥७॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यहाँ छह द्रव्यों को परस्पर अत्यन्त *संकर होने पर भी वे प्रतिनियत (अपने अपने निश्चित) स्वरूप से च्युत नहीं होते -- ऐसा कहा है । इसलिए (अपने अपने स्वभाव से च्युत नहीं होते इसलिए), परिणाम वाले होने पर भी वे नित्य हैं -- ऐसा पहले (छठवीं गाथा) में कहा था, और इसलिए वे एकत्व को प्राप्त नहीं होते, और यदद्यपि जीव तथा कर्म को व्यवहार-नय के कथन से एकत्व (कहा जाता) है तथापि वे (जीव तथा कर्म) एक दुसरे के स्वरूप को ग्रहण नहीं करते ॥७॥
*संकर=मिलन, मिलाप, अन्योन्य-अवगाहरूप, मिश्रीतपना