शतपर्वा: Difference between revisions
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== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<li | <li class="HindiText">एक विद्या का नाम है|</span><br> | ||
<li | <li class="HindiText">भगवान् ऋषभदेव से नमि और विनमि द्वारा राज्य की याचना करने पर धरणेंद्र ने अनेक देवों के संग आकर उन दोनों को अपनी देवियों से कुछ विद्याएँ दिलाकर संतुष्ट किया। <strong>शतपर्वा</strong> विद्या औषधियों की जानकार है|<span class="GRef">(हरिवंशपुराण/22/51-73)</span></span></li></p> | ||
<span class="HindiText">-देखें [[ विद्या#4 |विद्या-4 ]]।</span> | <span class="HindiText">-देखें [[ विद्या#4 |विद्या-4 ]]।</span> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> विद्याधरों की विद्याएं । ये विद्याएँ शक्ति रूप होती हैं ।एकपर्वा, द्विपर्वा, त्रिपर्वा, दशपर्वा, <strong>शतपर्वा</strong>, सहस्रपर्वा, लक्षपर्वा, उत्पातिनी, त्रिपातिनी, धारिणी, अंतविचारिणी, जलगति और अग्निगति समस्त निकायों में नाना प्रकार की शक्तियों से सहित नाना पर्वतों पर निवास करने वाली एवं नाना औषधियों की जानकार हैं। <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#325|पद्मपुराण - 7.325-334]]), (हरिवंशपुराण 22.57-73) </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> विद्याधरों की विद्याएं । ये विद्याएँ शक्ति रूप होती हैं ।एकपर्वा, द्विपर्वा, त्रिपर्वा, दशपर्वा, <strong>शतपर्वा</strong>, सहस्रपर्वा, लक्षपर्वा, उत्पातिनी, त्रिपातिनी, धारिणी, अंतविचारिणी, जलगति और अग्निगति समस्त निकायों में नाना प्रकार की शक्तियों से सहित नाना पर्वतों पर निवास करने वाली एवं नाना औषधियों की जानकार हैं। <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#325|पद्मपुराण - 7.325-334]]), ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#57|हरिवंशपुराण - 22.57-73]]) </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
-देखें विद्या-4 ।
पुराणकोष से
विद्याधरों की विद्याएं । ये विद्याएँ शक्ति रूप होती हैं ।एकपर्वा, द्विपर्वा, त्रिपर्वा, दशपर्वा, शतपर्वा, सहस्रपर्वा, लक्षपर्वा, उत्पातिनी, त्रिपातिनी, धारिणी, अंतविचारिणी, जलगति और अग्निगति समस्त निकायों में नाना प्रकार की शक्तियों से सहित नाना पर्वतों पर निवास करने वाली एवं नाना औषधियों की जानकार हैं। (पद्मपुराण - 7.325-334), (हरिवंशपुराण - 22.57-73)