वज्रबाहु: Difference between revisions
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</ol | <li> म. पु./सर्ग/श्लो. - वज्रजंघ (भगवान् ऋषभदेव का पूर्व का सातवाँ भव) का पिता था। (6/29)। पुष्कलावती देश के उत्पलखेट नगर का राजा था। (6/28)। अन्त में दीक्षित हो गये थे। (8/51-57)। </li> | ||
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<p id="1"> (1) विद्याधर नमि के वंश में हुए राजा वज्राभ का पुत्र और वज्रांक का पिता । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.19, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 13.23 </span></p> | |||
<p id="2">(2) विद्याधर विनमि का पुत्र । इसकी बहिन सुभद्रा चक्रवर्ती भरतेश के चौदह रतनों में एक स्त्री-रत्न थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.105-106 </span></p> | |||
<p id="3">(3) राजा वसु की वश परम्परा में हुए राजा दीर्घबाहु का पुत्र । यह लब्धाभिमान का पिता था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.2-3 344 </span></p> | |||
<p id="4">(4) विनीता नगरी के राजा सुरेन्द्रमन्यु और उसकी रानी कीर्तिसभा का पुत्र । यह पुरन्दर का सहोदर था । इसने नागपुर (हस्तिनापुर) के राजा इभवाहन और उसकी रानी चूड़ामणि की पुत्री मनोदया को विवाहा था । हँसी में उदयसुन्दर साले के यह कहने पर कि यदि आप दीक्षित हों तो मैं भी दीक्षा लूँगा यह सुनकर मार्ग में मुनि गुणसागर के दर्शन करके यह उनसे दीक्षित हो गया था । इसके साले उदयसुन्दर ने भी दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21.75-126 </span></p> | |||
<p id="5">(5) तीर्थंकर वृषभदेव के सातवें पूर्वभव का जीव जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश के उत्पलखेटक नगर का राजा । इसकी रानी वसुन्धरा और पुत्र वज्रजंघ था । यह शरदकालीन मेघों के उदय और विनाश को देख करके संसार के भोगों से विरक्त हो गया था । इसने पुत्र वज्रजंघ को राज्य सौंपकर श्री यमधर मुनि के समीप पांच सौ राजाओं के साथ दीक्षा ले ली । पश्चात् तपश्चर्या द्वारा कर्मों का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त करके यह मुक्त हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 6.26-29, 8.50-59 </span></p> | |||
<p id="6">(6) जम्बूद्वीप के कौसल देश में स्थित अयोध्या नगर का राजा । इसका इक्ष्वाकु वंश और काश्यप गोत्र था । प्रकरी इसकी रानी और आनन्द इसका पुत्र था । <span class="GRef"> महापुराण 73.41-43 </span></p> | |||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- प. पु./21/श्लो. - सुरेन्द्रमन्यु का पुत्र।77। ससुराल जाते समय मार्ग में मुनियों के दर्शनकर विरक्त हो गये।121-123। यह सुकौशल मुनि का पूर्वज था।
- म. पु./सर्ग/श्लो. - वज्रजंघ (भगवान् ऋषभदेव का पूर्व का सातवाँ भव) का पिता था। (6/29)। पुष्कलावती देश के उत्पलखेट नगर का राजा था। (6/28)। अन्त में दीक्षित हो गये थे। (8/51-57)।
पुराणकोष से
(1) विद्याधर नमि के वंश में हुए राजा वज्राभ का पुत्र और वज्रांक का पिता । पद्मपुराण 5.19, हरिवंशपुराण 13.23
(2) विद्याधर विनमि का पुत्र । इसकी बहिन सुभद्रा चक्रवर्ती भरतेश के चौदह रतनों में एक स्त्री-रत्न थी । हरिवंशपुराण 22.105-106
(3) राजा वसु की वश परम्परा में हुए राजा दीर्घबाहु का पुत्र । यह लब्धाभिमान का पिता था । हरिवंशपुराण 18.2-3 344
(4) विनीता नगरी के राजा सुरेन्द्रमन्यु और उसकी रानी कीर्तिसभा का पुत्र । यह पुरन्दर का सहोदर था । इसने नागपुर (हस्तिनापुर) के राजा इभवाहन और उसकी रानी चूड़ामणि की पुत्री मनोदया को विवाहा था । हँसी में उदयसुन्दर साले के यह कहने पर कि यदि आप दीक्षित हों तो मैं भी दीक्षा लूँगा यह सुनकर मार्ग में मुनि गुणसागर के दर्शन करके यह उनसे दीक्षित हो गया था । इसके साले उदयसुन्दर ने भी दीक्षा ले ली थी । पद्मपुराण 21.75-126
(5) तीर्थंकर वृषभदेव के सातवें पूर्वभव का जीव जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश के उत्पलखेटक नगर का राजा । इसकी रानी वसुन्धरा और पुत्र वज्रजंघ था । यह शरदकालीन मेघों के उदय और विनाश को देख करके संसार के भोगों से विरक्त हो गया था । इसने पुत्र वज्रजंघ को राज्य सौंपकर श्री यमधर मुनि के समीप पांच सौ राजाओं के साथ दीक्षा ले ली । पश्चात् तपश्चर्या द्वारा कर्मों का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त करके यह मुक्त हुआ । महापुराण 6.26-29, 8.50-59
(6) जम्बूद्वीप के कौसल देश में स्थित अयोध्या नगर का राजा । इसका इक्ष्वाकु वंश और काश्यप गोत्र था । प्रकरी इसकी रानी और आनन्द इसका पुत्र था । महापुराण 73.41-43