व्यंतर देव निर्देश: Difference between revisions
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<li><strong name="1" id="1"><span class="HindiText">व्यंतरदेव निर्देश</span></strong> <span class="HindiText"><br /> | |||
स.सि./४/११/२४३/१० विविधदेशान्तराणि येषां निवासास्ते ‘व्यन्तराः’ इत्यन्वर्था सामान्यसंज्ञेयमष्टानामपि विक-ल्पानाम् । = जिनका नाना प्रकार के देशों में निवास है, वे व्यन्तरदेव कहलाते हैं । यह सामान्य संज्ञा सार्थक है जो अपने आठों ही भेदों में लागू है । (रा.वा./४/११/१/२५७/१५) । | </span> | ||
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त.सू./४/११ व्यन्तराः किंनरकिंपुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः ।११। = व्यन्तरदेव आठ प्रकार के हैं–किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच (ति.प./६/२५); (त्रि.सा./२५१) । | <li><span class="HindiText"><strong name="1.1" id="1.1"> व्यंतरदेव का लक्षण</strong> </span><br /> | ||
स.सि./४/११/२४३/१० <span class="SanskritText">विविधदेशान्तराणि येषां निवासास्ते ‘व्यन्तराः’ इत्यन्वर्था सामान्यसंज्ञेयमष्टानामपि विक-ल्पानाम् ।</span> = <span class="HindiText">जिनका नाना प्रकार के देशों में निवास है, वे व्यन्तरदेव कहलाते हैं । यह सामान्य संज्ञा सार्थक है जो अपने आठों ही भेदों में लागू है । (रा.वा./४/११/१/२५७/१५) । <br /> | |||
ति.प./६/८८-८९ पल्लाउजुदे देवे कालो असणस्स पञ्च दिवसाणिं । दोण्णि च्चिय णादव्वो दसवाससहस्सआउम्मि ।८८। पलिदोवमाउजुत्तो पञ्चमुहुत्तेहिं एदि उस्सासो । सो अजुदाउजुदे वेंतरदवम्मि अ सत्त पाणेहिं ।८९। = पल्यप्रमाण आयु से युक्त देवों के आहार का काल ५ दिन और १०,००० वर्ष प्रमाण आयु वाले देवों के आहार का काल दो दिन मात्र जानना चाहिए ।८८। व्यन्तर देवों में जो पल्यप्रमाण आयु से युक्त हैं वे पाँच मुहूर्त्तों में और जो दश हजार प्रमाण आयु से संयुक्त हैं वे सात प्राणों (उच्छ्वास निश्वासपरिमित काल विशेष | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="1.2" id="1.2"> व्यंतरदेवों के भेद</strong> </span><br /> | |||
ति.प./६/गा.अवरा आहिधरित्ती अजुदाउजुदस्स पञ्चकोसाणिं । उक्किट्ठा पण्णासा हेट्ठोवरि पस्समाणस्स ।९०। पलिदोवमाउ जुत्तो वेंतरदेवो तलम्मि उवरिम्मि । अवधीए जोयणाणं एक्कं लक्खं पलोएदि ।९१। दसवास सहस्साऊ एक्कसयं माणुसाण मारेदुं । पोसेदुं पि समत्थो एक्केवको वेंतरो देवो ।९२। पण्णाधियसयदं डप्पमाणविक्खंभबहुलजुत्तं सो । खेत्तं णिय सत्तीए उक्खणिदूणं खवेदि अण्णत्थ ।९३। पल्लट्टदि भाजेहिं छक्खंडाणिं पि एक्कपल्लाऊ । मारेदुं पोसेदुं तेसु समत्थो ठिदं लोयं ।९४। उक्कस्से रूवसदं देवो विकरेदि अजुदमेत्ताऊ । अवरे सगरूवाणिं मज्झिमयं विविहरूवाणि ।९५। ऐसा वेंतरदेवा णियणिय ओहीण जेत्तियं खेत्तं । पूर ति तेत्तियं पि हु पत्तेक्कं विकरणबलेण ।९६। संखेज्जजोयणाणिं संखेज्जाऊ य एक्कसमयेण । जादि असंखेज्जाणिं ताणि असंखेज्जाऊ य ।९७। = नीचे व ऊपर देखने वाले दश हजार वर्ष प्रमाण आयु से युक्त व्यन्तर देवों के जघन्य अवधि का विषय पाँच कोश और उत्कृष्ट ५० कोश मात्र है ।९०। पल्योपमप्रमाण आयु से युक्त व्यन्तर देव अवधिज्ञान से नीचे व ऊपर एक लाख योजन प्रमाण देखते हैं ।९१। दश हजार प्रमाण आयु का धारक प्रत्येक व्यन्तर देव एक सौ मनुष्यों को मारने व पालने के लिए समर्थ है ।९२। वह देव एक सौ मनुष्यों को मारने व पालने के लिए समर्थ है ।९२। वह देव एक सौ पचास धनुषप्रमाण विस्तार व बाहल्य से युक्त क्षेत्र को अपनी शक्ति से उखाड़कर अन्यत्र फेंक सकता है ।९३। एक पल्यप्रमाण आयु का धारक प्रत्येक व्यन्तर देव अपनी भुजाओं से छह खण्डों को उलट सकता है और उनमें स्थित लोगों को मारने व पालने के लिए भी समर्थ है ।९४। दश हजार वर्ष मात्र आयु का धारक व्यंतर देव उत्कृष्ट रूप से सौ रूपों की और जघन्य रूप से सात रूपों की विक्रिया करता है । मध्यमरूप से वह देव सात से ऊपर और सौ से नीचे विविध रूपों की विक्रिया करता है ।९५। बाकी के व्यन्तर देवों में से प्रत्येक देव अपने-अपने अवधिज्ञानों का जितना क्षेत्र है । | त.सू./४/११ <span class="SanskritText">व्यन्तराः किंनरकिंपुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः ।११।</span> = <span class="HindiText">व्यन्तरदेव आठ प्रकार के हैं–किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच (ति.प./६/२५); (त्रि.सा./२५१) । <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.3" id="1.3"> व्यंतरों के आहार व श्वास का अन्तराल</strong> </span><br /> | |||
ति.प./६/८८-८९ <span class="PrakritGatha">पल्लाउजुदे देवे कालो असणस्स पञ्च दिवसाणिं । दोण्णि च्चिय णादव्वो दसवाससहस्सआउम्मि ।८८। पलिदोवमाउजुत्तो पञ्चमुहुत्तेहिं एदि उस्सासो । सो अजुदाउजुदे वेंतरदवम्मि अ सत्त पाणेहिं ।८९।</span> = <span class="HindiText">पल्यप्रमाण आयु से युक्त देवों के आहार का काल ५ दिन और १०,००० वर्ष प्रमाण आयु वाले देवों के आहार का काल दो दिन मात्र जानना चाहिए ।८८। व्यन्तर देवों में जो पल्यप्रमाण आयु से युक्त हैं वे पाँच मुहूर्त्तों में और जो दश हजार प्रमाण आयु से संयुक्त हैं वे सात प्राणों (उच्छ्वास निश्वासपरिमित काल विशेष देखें - [[ गणित#I.1.4 | गणित / I / १ / ४ ]]) में उच्छ्वास को प्राप्त करते हैं ।८९। (त्रि.सा./३०१) । <br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.4" id="1.4"> व्यंतरों के ज्ञान व शरीर की शक्ति विक्रिया आदि</strong> </span><br /> | |||
ति.प./६/गा.<span class="PrakritGatha">अवरा आहिधरित्ती अजुदाउजुदस्स पञ्चकोसाणिं । उक्किट्ठा पण्णासा हेट्ठोवरि पस्समाणस्स ।९०। पलिदोवमाउ जुत्तो वेंतरदेवो तलम्मि उवरिम्मि । अवधीए जोयणाणं एक्कं लक्खं पलोएदि ।९१। दसवास सहस्साऊ एक्कसयं माणुसाण मारेदुं । पोसेदुं पि समत्थो एक्केवको वेंतरो देवो ।९२। पण्णाधियसयदं डप्पमाणविक्खंभबहुलजुत्तं सो । खेत्तं णिय सत्तीए उक्खणिदूणं खवेदि अण्णत्थ ।९३। पल्लट्टदि भाजेहिं छक्खंडाणिं पि एक्कपल्लाऊ । मारेदुं पोसेदुं तेसु समत्थो ठिदं लोयं ।९४। उक्कस्से रूवसदं देवो विकरेदि अजुदमेत्ताऊ । अवरे सगरूवाणिं मज्झिमयं विविहरूवाणि ।९५। ऐसा वेंतरदेवा णियणिय ओहीण जेत्तियं खेत्तं । पूर ति तेत्तियं पि हु पत्तेक्कं विकरणबलेण ।९६। संखेज्जजोयणाणिं संखेज्जाऊ य एक्कसमयेण । जादि असंखेज्जाणिं ताणि असंखेज्जाऊ य ।९७।</span> = <span class="HindiText">नीचे व ऊपर देखने वाले दश हजार वर्ष प्रमाण आयु से युक्त व्यन्तर देवों के जघन्य अवधि का विषय पाँच कोश और उत्कृष्ट ५० कोश मात्र है ।९०। पल्योपमप्रमाण आयु से युक्त व्यन्तर देव अवधिज्ञान से नीचे व ऊपर एक लाख योजन प्रमाण देखते हैं ।९१। दश हजार प्रमाण आयु का धारक प्रत्येक व्यन्तर देव एक सौ मनुष्यों को मारने व पालने के लिए समर्थ है ।९२। वह देव एक सौ मनुष्यों को मारने व पालने के लिए समर्थ है ।९२। वह देव एक सौ पचास धनुषप्रमाण विस्तार व बाहल्य से युक्त क्षेत्र को अपनी शक्ति से उखाड़कर अन्यत्र फेंक सकता है ।९३। एक पल्यप्रमाण आयु का धारक प्रत्येक व्यन्तर देव अपनी भुजाओं से छह खण्डों को उलट सकता है और उनमें स्थित लोगों को मारने व पालने के लिए भी समर्थ है ।९४। दश हजार वर्ष मात्र आयु का धारक व्यंतर देव उत्कृष्ट रूप से सौ रूपों की और जघन्य रूप से सात रूपों की विक्रिया करता है । मध्यमरूप से वह देव सात से ऊपर और सौ से नीचे विविध रूपों की विक्रिया करता है ।९५। बाकी के व्यन्तर देवों में से प्रत्येक देव अपने-अपने अवधिज्ञानों का जितना क्षेत्र है । उतने मात्र क्षेत्र को विक्रिया बल से पूर्ण करते हैं।९६। संख्यात वर्षप्रमाण आयु से युक्त व्यन्तर देव एक समय में संख्यात योजन और असंख्यात वर्षप्रमाण आयु से युक्त असंख्यात योजन जाता है।९७। <br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1.5" id="1.5"> व्यन्तरदेव मनुष्यों के शरीर में प्रवेश करके उन्हें विकृत कर सकते हैं </strong> </span><br /> | |||
भ.आ./मू./१९७७/१७४१<span class="PrakritGatha"> जदि वा एस ण कीरेज्ज विधी तो तत्थ देवदा कोई। आदाय तं कलेवरमुट्ठिज्ज रमिज्ज बाधेज्ज।१९७७।</span> = <span class="HindiText">यदि यह विधि न की जावेगी अर्थात् क्षपक के मृत शरीर के अंग बाँधे या छेदे नहीं जायेंगे तो मृत शरीर में क्रीड़ा करने का स्वभाव वाला कोई देवता (भूत अथवा पिशाच) उसमें प्रवेश करेगा। उस प्रेत को लेकर वह उठेगा, भागेगा, क्रीडा करेगा।१९७७।</span><br /> | |||
स्या.मं./११/१३५/१० <span class="SanskritText">यदपि च गयाश्राद्धादियाचनमुपलभ्यते, तदपि तादृशविप्रलम्भकविभंगज्ञानिव्यन्तरादिकृतमेव निश्चयेम्।</span>= <span class="HindiText">बहुत से पितर पुत्रों के शरीर में प्रविष्ठ होकर जो गया आदि तीर्थस्थानों में श्राद्ध करने के लिए कहते हैं, वे भी कोई ठगने वाले विभंगज्ञान के धारक व्यन्तर आदि नीच जाति के देव ही हुआ करते हैं।<br /> | |||
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<li class="HindiText"><strong name="1.6" id="1.6"> व्यंतरों के शरीरों के वर्ण व चैत्य वृक्ष</strong> <br /> | |||
ति.प./६/गा.नं. (त्रि.सा./२५२-२५३) </li> | |||
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<table border="0" cellspacing="0" cellpadding="0" width="265"> | |||
<tr> | |||
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<strong>नाम</strong> </td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText"><strong>वर्ण</strong> </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText"><strong>वृक्ष</strong> </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">गा.२५ </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">गा. ५५-५६ गा. ५७-५८ </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">गा. २८ </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">किन्नर </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap" valign="bottom"><p class="HindiText">प्रियंगु </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">अशोक </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">किम्पुरुष </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">सुवर्ण </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">चम्पक </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">महोरग </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">श्याम </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">नागद्रुम </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">गन्धर्व </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">सुवर्ण </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">तुम्बुर </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">यक्ष </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">श्याम </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">न्यग्रोध </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">राक्षस </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">श्याम </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap" valign="bottom"><p class="HindiText">कण्टक वृक्ष </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">भूत </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">श्याम </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">तुलसी </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="64" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">पिशाच </p></td> | |||
<td width="99" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">कज्जल </p></td> | |||
<td width="102" nowrap="nowrap"><p class="HindiText">कदंब </p></td> | |||
</tr> | |||
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[[व्यंतर | Previous Page]] | [[व्यंतर | Previous Page]] |
Revision as of 00:20, 28 February 2015
- व्यंतरदेव निर्देश
- व्यंतरदेव का लक्षण
स.सि./४/११/२४३/१० विविधदेशान्तराणि येषां निवासास्ते ‘व्यन्तराः’ इत्यन्वर्था सामान्यसंज्ञेयमष्टानामपि विक-ल्पानाम् । = जिनका नाना प्रकार के देशों में निवास है, वे व्यन्तरदेव कहलाते हैं । यह सामान्य संज्ञा सार्थक है जो अपने आठों ही भेदों में लागू है । (रा.वा./४/११/१/२५७/१५) ।
- व्यंतरदेवों के भेद
त.सू./४/११ व्यन्तराः किंनरकिंपुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः ।११। = व्यन्तरदेव आठ प्रकार के हैं–किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच (ति.प./६/२५); (त्रि.सा./२५१) ।
- व्यंतरों के आहार व श्वास का अन्तराल
ति.प./६/८८-८९ पल्लाउजुदे देवे कालो असणस्स पञ्च दिवसाणिं । दोण्णि च्चिय णादव्वो दसवाससहस्सआउम्मि ।८८। पलिदोवमाउजुत्तो पञ्चमुहुत्तेहिं एदि उस्सासो । सो अजुदाउजुदे वेंतरदवम्मि अ सत्त पाणेहिं ।८९। = पल्यप्रमाण आयु से युक्त देवों के आहार का काल ५ दिन और १०,००० वर्ष प्रमाण आयु वाले देवों के आहार का काल दो दिन मात्र जानना चाहिए ।८८। व्यन्तर देवों में जो पल्यप्रमाण आयु से युक्त हैं वे पाँच मुहूर्त्तों में और जो दश हजार प्रमाण आयु से संयुक्त हैं वे सात प्राणों (उच्छ्वास निश्वासपरिमित काल विशेष देखें - गणित / I / १ / ४ ) में उच्छ्वास को प्राप्त करते हैं ।८९। (त्रि.सा./३०१) ।
- व्यंतरों के ज्ञान व शरीर की शक्ति विक्रिया आदि
ति.प./६/गा.अवरा आहिधरित्ती अजुदाउजुदस्स पञ्चकोसाणिं । उक्किट्ठा पण्णासा हेट्ठोवरि पस्समाणस्स ।९०। पलिदोवमाउ जुत्तो वेंतरदेवो तलम्मि उवरिम्मि । अवधीए जोयणाणं एक्कं लक्खं पलोएदि ।९१। दसवास सहस्साऊ एक्कसयं माणुसाण मारेदुं । पोसेदुं पि समत्थो एक्केवको वेंतरो देवो ।९२। पण्णाधियसयदं डप्पमाणविक्खंभबहुलजुत्तं सो । खेत्तं णिय सत्तीए उक्खणिदूणं खवेदि अण्णत्थ ।९३। पल्लट्टदि भाजेहिं छक्खंडाणिं पि एक्कपल्लाऊ । मारेदुं पोसेदुं तेसु समत्थो ठिदं लोयं ।९४। उक्कस्से रूवसदं देवो विकरेदि अजुदमेत्ताऊ । अवरे सगरूवाणिं मज्झिमयं विविहरूवाणि ।९५। ऐसा वेंतरदेवा णियणिय ओहीण जेत्तियं खेत्तं । पूर ति तेत्तियं पि हु पत्तेक्कं विकरणबलेण ।९६। संखेज्जजोयणाणिं संखेज्जाऊ य एक्कसमयेण । जादि असंखेज्जाणिं ताणि असंखेज्जाऊ य ।९७। = नीचे व ऊपर देखने वाले दश हजार वर्ष प्रमाण आयु से युक्त व्यन्तर देवों के जघन्य अवधि का विषय पाँच कोश और उत्कृष्ट ५० कोश मात्र है ।९०। पल्योपमप्रमाण आयु से युक्त व्यन्तर देव अवधिज्ञान से नीचे व ऊपर एक लाख योजन प्रमाण देखते हैं ।९१। दश हजार प्रमाण आयु का धारक प्रत्येक व्यन्तर देव एक सौ मनुष्यों को मारने व पालने के लिए समर्थ है ।९२। वह देव एक सौ मनुष्यों को मारने व पालने के लिए समर्थ है ।९२। वह देव एक सौ पचास धनुषप्रमाण विस्तार व बाहल्य से युक्त क्षेत्र को अपनी शक्ति से उखाड़कर अन्यत्र फेंक सकता है ।९३। एक पल्यप्रमाण आयु का धारक प्रत्येक व्यन्तर देव अपनी भुजाओं से छह खण्डों को उलट सकता है और उनमें स्थित लोगों को मारने व पालने के लिए भी समर्थ है ।९४। दश हजार वर्ष मात्र आयु का धारक व्यंतर देव उत्कृष्ट रूप से सौ रूपों की और जघन्य रूप से सात रूपों की विक्रिया करता है । मध्यमरूप से वह देव सात से ऊपर और सौ से नीचे विविध रूपों की विक्रिया करता है ।९५। बाकी के व्यन्तर देवों में से प्रत्येक देव अपने-अपने अवधिज्ञानों का जितना क्षेत्र है । उतने मात्र क्षेत्र को विक्रिया बल से पूर्ण करते हैं।९६। संख्यात वर्षप्रमाण आयु से युक्त व्यन्तर देव एक समय में संख्यात योजन और असंख्यात वर्षप्रमाण आयु से युक्त असंख्यात योजन जाता है।९७।
- व्यन्तरदेव मनुष्यों के शरीर में प्रवेश करके उन्हें विकृत कर सकते हैं
भ.आ./मू./१९७७/१७४१ जदि वा एस ण कीरेज्ज विधी तो तत्थ देवदा कोई। आदाय तं कलेवरमुट्ठिज्ज रमिज्ज बाधेज्ज।१९७७। = यदि यह विधि न की जावेगी अर्थात् क्षपक के मृत शरीर के अंग बाँधे या छेदे नहीं जायेंगे तो मृत शरीर में क्रीड़ा करने का स्वभाव वाला कोई देवता (भूत अथवा पिशाच) उसमें प्रवेश करेगा। उस प्रेत को लेकर वह उठेगा, भागेगा, क्रीडा करेगा।१९७७।
स्या.मं./११/१३५/१० यदपि च गयाश्राद्धादियाचनमुपलभ्यते, तदपि तादृशविप्रलम्भकविभंगज्ञानिव्यन्तरादिकृतमेव निश्चयेम्।= बहुत से पितर पुत्रों के शरीर में प्रविष्ठ होकर जो गया आदि तीर्थस्थानों में श्राद्ध करने के लिए कहते हैं, वे भी कोई ठगने वाले विभंगज्ञान के धारक व्यन्तर आदि नीच जाति के देव ही हुआ करते हैं।
- व्यंतरों के शरीरों के वर्ण व चैत्य वृक्ष
ति.प./६/गा.नं. (त्रि.सा./२५२-२५३)
- व्यंतरदेव का लक्षण
नाम |
वर्ण |
वृक्ष |
गा.२५ |
गा. ५५-५६ गा. ५७-५८ |
गा. २८ |
किन्नर |
प्रियंगु |
अशोक |
किम्पुरुष |
सुवर्ण |
चम्पक |
महोरग |
श्याम |
नागद्रुम |
गन्धर्व |
सुवर्ण |
तुम्बुर |
यक्ष |
श्याम |
न्यग्रोध |
राक्षस |
श्याम |
कण्टक वृक्ष |
भूत |
श्याम |
तुलसी |
पिशाच |
कज्जल |
कदंब |