राक्षस: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong> राक्षस देवों के वर्ण वैभव अवस्थान आदि</strong>−देखें | <li><span class="HindiText"><strong> राक्षस देवों के वर्ण वैभव अवस्थान आदि</strong>−देखें [[ व्यंतर ]]। </span></li> | ||
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<p id="1"> (1) व्यन्तर जाति के देव । ये पहली पृथिवी के पंकभाग में रहते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.50 </span></p> | |||
<p id="2">(2) रात्रि का दूसरा प्रहर । <span class="GRef"> महापुराण 74.255 </span></p> | |||
<p id="3">(3) पलाशनगर का राजा । इसे राक्षस-विद्या सिद्ध होने के कारण इसका यह नाम प्रसिद्ध हो गया था । <span class="GRef"> महापुराण 75.116 </span></p> | |||
<p id="4">(4) एक विद्या । मर 75.116</p> | |||
<p id="5">(5) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की दक्षिण दिशा में स्थित एक द्वीप । राक्षसवंशी-विद्याधरों द्वारा रक्षा किये जाने से यह द्वीप इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसकी परिधि इक्कीस योजन है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3. 43, 5. 386, 48.106-107 </span></p> | |||
<p id="6">(6) विद्याधर मनोवेग का पुत्र । सुप्रभा इसकी रानी थी । इसके दो पुत्र थे― आदित्यगति और वृहत्कीर्ति । इस राजा ने इन्हीं पुत्रों को राज्यभार सौंपकर दीक्षा ले ली थी । यह मरकर स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.378-380 </span></p> | |||
<p id="7">(7) विद्याघरों का एक वंश । इस वंश में एक राक्षस नाम का विद्याधर हुआ है, जिसके नाम पर यह वंश प्रसिद्ध हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5. 378 </span></p> | |||
<p id="8">(8) राक्षसवंशी-विद्याधर । राक्षस जातीय देवों के द्वारा द्वीप की रक्षा होने से यहाँ के निवासी राक्षस नाम से प्रसिद्ध हुए । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.386 </span></p> | |||
<p id="9">(9) विद्याधर । ये न देव होते हैं न राक्षस । ये राक्षस नामक द्वीप के रक्षक होने से राक्षस कहलाते थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 43.38 </span></p> | |||
<p id="10">(10) एक अस्त्र-बाण । जरासन्ध ने इसको कृष्ण पर फेंका था और कृष्ण ने इस अस्त्र का नारायण अस्त्र से निवारण किया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.54 </span></p> | |||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- व्यन्तर देवों का एक भेद−देखें व्यन्तर ।
- पिशाच जातीय व्यन्तर देवों का एक भेद−देखें पिशाच ।
- मनोवेग विद्याधर का पुत्र था (प. पु./5/378) इसी के नाम पर राक्षस द्वीप में रहने वाले विद्याधरों का वंश राक्षस वंश कहलाने लगा ।−देखें इतिहास - 10.12 ।
- राक्षस का लक्षण
ध. 13/5, 5, 140/391/10 भीषणरूपविकरणप्रियाः राक्षसा नाम । = जिन्हें भीषण रूप की विक्रिया करना प्रिय है, वे राक्षस कहलाते हैं ।
- राक्षस देव के भेद
ति. पं./6/44 भीममहाभीमविग्घविणायका उदकरक्खसा तह य । रक्खसरक्खसणामा सत्तमया बम्हरक्खसया ।44। = भीम, महाभीम, विनायक, उदक, राक्षस, राक्षसराक्षस और सातवाँ ब्रह्मराक्षस इस प्रकार ये सात भेद राक्षस देवों के हैं ।44। (त्रि. सा./267) ।
- राक्षस देवों के वर्ण वैभव अवस्थान आदि−देखें व्यंतर ।
पुराणकोष से
(1) व्यन्तर जाति के देव । ये पहली पृथिवी के पंकभाग में रहते हैं । हरिवंशपुराण 4.50
(2) रात्रि का दूसरा प्रहर । महापुराण 74.255
(3) पलाशनगर का राजा । इसे राक्षस-विद्या सिद्ध होने के कारण इसका यह नाम प्रसिद्ध हो गया था । महापुराण 75.116
(4) एक विद्या । मर 75.116
(5) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की दक्षिण दिशा में स्थित एक द्वीप । राक्षसवंशी-विद्याधरों द्वारा रक्षा किये जाने से यह द्वीप इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसकी परिधि इक्कीस योजन है । पद्मपुराण 3. 43, 5. 386, 48.106-107
(6) विद्याधर मनोवेग का पुत्र । सुप्रभा इसकी रानी थी । इसके दो पुत्र थे― आदित्यगति और वृहत्कीर्ति । इस राजा ने इन्हीं पुत्रों को राज्यभार सौंपकर दीक्षा ले ली थी । यह मरकर स्वर्ग में देव हुआ । पद्मपुराण 5.378-380
(7) विद्याघरों का एक वंश । इस वंश में एक राक्षस नाम का विद्याधर हुआ है, जिसके नाम पर यह वंश प्रसिद्ध हुआ । पद्मपुराण 5. 378
(8) राक्षसवंशी-विद्याधर । राक्षस जातीय देवों के द्वारा द्वीप की रक्षा होने से यहाँ के निवासी राक्षस नाम से प्रसिद्ध हुए । पद्मपुराण 5.386
(9) विद्याधर । ये न देव होते हैं न राक्षस । ये राक्षस नामक द्वीप के रक्षक होने से राक्षस कहलाते थे । पद्मपुराण 43.38
(10) एक अस्त्र-बाण । जरासन्ध ने इसको कृष्ण पर फेंका था और कृष्ण ने इस अस्त्र का नारायण अस्त्र से निवारण किया था । हरिवंशपुराण 52.54