भरत क्षेत्र: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"> अढाई द्वीपों में स्थित भरत क्षेत्र का लोक में अवस्थान व विस्तार | <li class="HindiText"> अढाई द्वीपों में स्थित भरत क्षेत्र का लोक में अवस्थान व विस्तार आदि–देखें [[ लोक#3.3 | लोक - 3.3]]। </li> | ||
<li><span class="HindiText">इसमें वर्तनेवाले उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी काल की विशेषताएँ–देखें | <li><span class="HindiText">इसमें वर्तनेवाले उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी काल की विशेषताएँ–देखें [[ काल ]]।</span><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li> रा.वा./ | <li> रा.वा./3/10/1,2/171/6<span class="SanskritText"> विजयार्धस्य दक्षिणतो जलधेरुत्तरत: गङ्गासिन्ध्वोर्बहुमध्यदेशभागे विनीता नाम नगरी द्वादशयोजनायामा, नवयोजनविस्तारा। तस्यामुत्पन्न: सर्वराजलक्षणसंपन्नो भरतो नवयोजनविस्तारा। तस्यामुत्पन्न: सर्वराजलक्षणसंपन्नो भरतो नामद्यश्चक्रधर: षट्खण्डाधिपतिः। अवसर्पिण्यां राज्यविभागकाले तेनादौ भुक्तत्वात्, तद्योगाद्भरत इत्याख्यायते वर्ष:। अथवा जगतोऽनादित्वादहतुका अनादिसंबन्धपारिणामिकी भरतसंज्ञा।</span> =<span class="HindiText"> विजयार्ध में, समुद्र से उत्तर और गंगा-सिन्धु नदियों के मध्य भाग में 12 योजन लम्बी 9 योजन चौड़ी विनीता नाम की नगरी थी। उसमें भरत नाम का षट्खण्डाधिपति चक्रवर्ती हुआ था। उसने सर्व प्रथम राज्य विभाग करके इस क्षेत्र का शासन किया था अतः इसका (इस क्षेत्र का) नाम भरत पड़ा अथवा, जैसे संसार अनादि है उसी तरह क्षेत्र आदि के नाम भी किसी कारण से अनादि हैं।</span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
[[भरत कूट | | <noinclude> | ||
[[ भरत कूट | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:भ]] | [[ भरतकूट | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: भ]] |
Revision as of 21:44, 5 July 2020
- अढाई द्वीपों में स्थित भरत क्षेत्र का लोक में अवस्थान व विस्तार आदि–देखें लोक - 3.3।
- इसमें वर्तनेवाले उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी काल की विशेषताएँ–देखें काल ।
- रा.वा./3/10/1,2/171/6 विजयार्धस्य दक्षिणतो जलधेरुत्तरत: गङ्गासिन्ध्वोर्बहुमध्यदेशभागे विनीता नाम नगरी द्वादशयोजनायामा, नवयोजनविस्तारा। तस्यामुत्पन्न: सर्वराजलक्षणसंपन्नो भरतो नवयोजनविस्तारा। तस्यामुत्पन्न: सर्वराजलक्षणसंपन्नो भरतो नामद्यश्चक्रधर: षट्खण्डाधिपतिः। अवसर्पिण्यां राज्यविभागकाले तेनादौ भुक्तत्वात्, तद्योगाद्भरत इत्याख्यायते वर्ष:। अथवा जगतोऽनादित्वादहतुका अनादिसंबन्धपारिणामिकी भरतसंज्ञा। = विजयार्ध में, समुद्र से उत्तर और गंगा-सिन्धु नदियों के मध्य भाग में 12 योजन लम्बी 9 योजन चौड़ी विनीता नाम की नगरी थी। उसमें भरत नाम का षट्खण्डाधिपति चक्रवर्ती हुआ था। उसने सर्व प्रथम राज्य विभाग करके इस क्षेत्र का शासन किया था अतः इसका (इस क्षेत्र का) नाम भरत पड़ा अथवा, जैसे संसार अनादि है उसी तरह क्षेत्र आदि के नाम भी किसी कारण से अनादि हैं।