भानुकर्ण: Difference between revisions
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<p> | <p> रत्नश्रवा और रानी केकसी के तीन पुत्रों में दूसरा पुत्र । रावण इसका बड़ा भाई तथा चन्द्रनखा छोटी बहिन और विभीषण छोटा भाई था । इसने अपने भाइयों के साथ एक लाख जप करके सर्वकामान्नदा आठ अक्षरों की विद्या आधे ही दिन में सिद्ध की थी । यह विद्या इसे मनचाहा अन्न देती जिससे इसे क्षुधा-सम्बन्धी पीड़ा नहीं होती थी । इसे सर्वाहा, इतिसंवृद्धि, जृम्भिणी, व्योमगामिनी और निद्राणी ये पांच विद्याएँ भी प्राप्त थी । इसने कुम्भपुर नगर के राजा महोदर की सुरूपाक्षी रानी की पुत्री तडिन्माला प्राप्त की थी । इसने अनन्तबल केवली के साथ तब तक आहार न करने की प्रतिज्ञा की थी जब तक कि वह अर्हन्त, सिद्ध, साधु और जिनधर्म की शरण में रहकर प्रतिदिन प्रातःकाल अभिषेक पूर्वक जिनेन्द्रदेव और साधुओं की पूजा नहीं कर लेगा । युद्ध में राम ने सूर्यास्त्र को नष्ट कर तथा नागास्त्र चलाकर इसे रथ रहित कर दिया था । राम के द्वारा नागपाश से बांधे जाने पर यह पृथिवी पर गिर गया था परन्तु राम की आज्ञा पाकर भामण्डल ने इसे रथ पर बैठा दिया था । अन्त में रावण की मृत्यु के पश्चात् इसने विद्याधरों के वैभव को तृण के समान त्याग कर विधिपूर्वक निर्ग्रन्थ दीक्षा ले ली थी । पश्चात् यह केवली होकर मुक्त हुआ । इसका अपर नाम कुम्भकर्ण था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.164-165, 222-225, 264-265, 333, 8. 142-143, 14.372-374, 62. 66-67, 70, 78-82-84, 80. 129-130 </span></p> | ||
Revision as of 21:44, 5 July 2020
रत्नश्रवा और रानी केकसी के तीन पुत्रों में दूसरा पुत्र । रावण इसका बड़ा भाई तथा चन्द्रनखा छोटी बहिन और विभीषण छोटा भाई था । इसने अपने भाइयों के साथ एक लाख जप करके सर्वकामान्नदा आठ अक्षरों की विद्या आधे ही दिन में सिद्ध की थी । यह विद्या इसे मनचाहा अन्न देती जिससे इसे क्षुधा-सम्बन्धी पीड़ा नहीं होती थी । इसे सर्वाहा, इतिसंवृद्धि, जृम्भिणी, व्योमगामिनी और निद्राणी ये पांच विद्याएँ भी प्राप्त थी । इसने कुम्भपुर नगर के राजा महोदर की सुरूपाक्षी रानी की पुत्री तडिन्माला प्राप्त की थी । इसने अनन्तबल केवली के साथ तब तक आहार न करने की प्रतिज्ञा की थी जब तक कि वह अर्हन्त, सिद्ध, साधु और जिनधर्म की शरण में रहकर प्रतिदिन प्रातःकाल अभिषेक पूर्वक जिनेन्द्रदेव और साधुओं की पूजा नहीं कर लेगा । युद्ध में राम ने सूर्यास्त्र को नष्ट कर तथा नागास्त्र चलाकर इसे रथ रहित कर दिया था । राम के द्वारा नागपाश से बांधे जाने पर यह पृथिवी पर गिर गया था परन्तु राम की आज्ञा पाकर भामण्डल ने इसे रथ पर बैठा दिया था । अन्त में रावण की मृत्यु के पश्चात् इसने विद्याधरों के वैभव को तृण के समान त्याग कर विधिपूर्वक निर्ग्रन्थ दीक्षा ले ली थी । पश्चात् यह केवली होकर मुक्त हुआ । इसका अपर नाम कुम्भकर्ण था । पद्मपुराण 7.164-165, 222-225, 264-265, 333, 8. 142-143, 14.372-374, 62. 66-67, 70, 78-82-84, 80. 129-130