मधुकर: Difference between revisions
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<p> एक कीट-भ्रमर । यह मकरन्द के रस में इतना आसक्त हो जाता है कि उसे सूर्य कब अस्त हो गया यह ज्ञात नहीं हो पाता । रात्रि आरम्भ होते ही कमल संकुचित हो जाते हैं और यह उसमें बन्द होकर मर जाता है । इसका अपर नाम द्विरेफ है । पद्मपुराण 5.305-307</p> | <p> एक कीट-भ्रमर । यह मकरन्द के रस में इतना आसक्त हो जाता है कि उसे सूर्य कब अस्त हो गया यह ज्ञात नहीं हो पाता । रात्रि आरम्भ होते ही कमल संकुचित हो जाते हैं और यह उसमें बन्द होकर मर जाता है । इसका अपर नाम द्विरेफ है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.305-307 </span></p> | ||
Revision as of 21:45, 5 July 2020
एक कीट-भ्रमर । यह मकरन्द के रस में इतना आसक्त हो जाता है कि उसे सूर्य कब अस्त हो गया यह ज्ञात नहीं हो पाता । रात्रि आरम्भ होते ही कमल संकुचित हो जाते हैं और यह उसमें बन्द होकर मर जाता है । इसका अपर नाम द्विरेफ है । पद्मपुराण 5.305-307