रसत्याग: Difference between revisions
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
निद्रा और इन्द्रिय विजय के लिए किया जानेवाला एक बाह्य तप । इसमें नित्य आलस्य रहित होकर दूध, घी, गुड़ आदि रसों का त्याग किया जाता है । इसका अपर नाम रसपरित्याग है । महापुराण 20. 177, हरिवंशपुराण 64.24, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.35