योगनिर्वाण संप्राप्ति: Difference between revisions
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<p> दीक्षान्वय की एक किया । यह योगों (ध्यान) के हटाने के लिए संवेगपूर्वक की गयी परम तप रूप एक किया है । इसमें राग आदि दोषों को छोड़ते हुए शरीर कृश किया जाता है । साधक सल्लेखना मे स्थिर होकर सांसारिकता से हटते हुए मोक्ष का ही चिन्तन करता है । महापुराण 38. 59, 178-185</p> | <p> दीक्षान्वय की एक किया । यह योगों (ध्यान) के हटाने के लिए संवेगपूर्वक की गयी परम तप रूप एक किया है । इसमें राग आदि दोषों को छोड़ते हुए शरीर कृश किया जाता है । साधक सल्लेखना मे स्थिर होकर सांसारिकता से हटते हुए मोक्ष का ही चिन्तन करता है । <span class="GRef"> महापुराण 38. 59, 178-185 </span></p> | ||
Revision as of 21:46, 5 July 2020
दीक्षान्वय की एक किया । यह योगों (ध्यान) के हटाने के लिए संवेगपूर्वक की गयी परम तप रूप एक किया है । इसमें राग आदि दोषों को छोड़ते हुए शरीर कृश किया जाता है । साधक सल्लेखना मे स्थिर होकर सांसारिकता से हटते हुए मोक्ष का ही चिन्तन करता है । महापुराण 38. 59, 178-185