योगनिर्वाणसाधन
From जैनकोष
दीक्षान्वय की एक क्रिया । इसमें साधु जीवन के अंत में शरीर और आहार से ममत्व छोड़कर पंचपरमेष्ठियों का ध्यान करता है । (महापुराण 38.59, 186-189)
दीक्षान्वय की एक क्रिया । इसमें साधु जीवन के अंत में शरीर और आहार से ममत्व छोड़कर पंचपरमेष्ठियों का ध्यान करता है । (महापुराण 38.59, 186-189)