योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 111: Difference between revisions
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आस्रव के विशेष कारण - | <p class="Utthanika">आस्रव के विशेष कारण -</p> | ||
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मिथ्यादृक्त्वमचारित्रं कषायो योग इत्यमी ।<br> | मिथ्यादृक्त्वमचारित्रं कषायो योग इत्यमी ।<br> | ||
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<p><b> अन्वय </b>:- मिथ्यादृक्त्वं, अचारित्रं, कषाय: (च) योग: इति अमी चत्वार: विशेषेण अघसंग्रहे प्रत्यया: सन्ति । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- मिथ्यादृक्त्वं, अचारित्रं, कषाय: (च) योग: इति अमी चत्वार: विशेषेण अघसंग्रहे प्रत्यया: सन्ति । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- मिथ्यादर्शन, असंयम, कषाय और योग - ये चार परिणाम पाप के आस्रव में विशेषरूप से कारण हैं । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- मिथ्यादर्शन, असंयम, कषाय और योग - ये चार परिणाम पाप के आस्रव में विशेषरूप से कारण हैं । </p> | ||
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Latest revision as of 10:29, 15 May 2009
आस्रव के विशेष कारण -
मिथ्यादृक्त्वमचारित्रं कषायो योग इत्यमी ।
चत्वार: प्रत्यया: सन्ति विशेषेणाघसंग्रहे ।।१११।।
अन्वय :- मिथ्यादृक्त्वं, अचारित्रं, कषाय: (च) योग: इति अमी चत्वार: विशेषेण अघसंग्रहे प्रत्यया: सन्ति ।
सरलार्थ :- मिथ्यादर्शन, असंयम, कषाय और योग - ये चार परिणाम पाप के आस्रव में विशेषरूप से कारण हैं ।