योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 110
From जैनकोष
आस्रव का सामान्य कारण -
शुभाशुभोपयोगेन वासिता योग-वृत्तय: ।
सामान्येन प्रजायन्ते दुरितास्रव-हेतव: ।।११०।।
अन्वय :- शुभ-अशुभ-उपयोगेन वासिता: योग-वृत्तय: सामान्येन दुरितास्रव-हेतव: प्रजायन्ते ।
सरलार्थ :- शुभ तथा अशुभ उपयोग से रंजित अर्थात् शुभाशुभभावों में लगे हुए ज्ञान-दर्शन परिणाम से रंजित जो मन-वचन-कायरूप योगों की प्रवृत्तियाँ हैं, वे सामान्य से पापरूप (पुण्य- पाप) कर्मो के आस्रव का कारण होती हैं ।