योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 72: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: कालद्रव्य की संख्या एवं उसकी व्यापकता - <p class="SanskritGatha"> असंख्या भुवनाकाशे का...) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
धर्म, अधर्म और पुद्गलद्रव्य की व्यापकता - | |||
<p class="SanskritGatha"> | <p class="SanskritGatha"> | ||
धर्माधर्मौ स्थितौ व्याप्य लोकाकाशमशेषकम् ।<br> | |||
व्योैकांशादिषु ज्ञेया पुद्गलानामवस्थिति: ।।७२।।<br> | |||
</p> | </p> | ||
<p><b> अन्वय </b>:- | <p><b> अन्वय </b>:- धर्माधर्मौ अशेषकं लोकाकाशं व्याप्य स्थितौ (स्त:) । पुद्गलानां अवस्थिति: व्यो-एक-अंशादिषु ज्ञेया । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- लोकाकाश में | <p><b> सरलार्थ </b>:- धर्म, अधर्म-दोनों द्रव्य संपूर्ण लोकाकाश में व्यापकर तिष्ठते हैं । पुद्गलों का अवस्थान/व्यापकता आकाश द्रव्य के एक आदि अंश अर्थात् एक प्रदेश से लेकर दो, तीन, चार आदि प्रदेश बढ़ाते हुए संपूर्ण लोकाकाश में जानना चाहिए । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 71 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 71 | पिछली गाथा]] |
Revision as of 22:59, 19 January 2009
धर्म, अधर्म और पुद्गलद्रव्य की व्यापकता -
धर्माधर्मौ स्थितौ व्याप्य लोकाकाशमशेषकम् ।
व्योैकांशादिषु ज्ञेया पुद्गलानामवस्थिति: ।।७२।।
अन्वय :- धर्माधर्मौ अशेषकं लोकाकाशं व्याप्य स्थितौ (स्त:) । पुद्गलानां अवस्थिति: व्यो-एक-अंशादिषु ज्ञेया ।
सरलार्थ :- धर्म, अधर्म-दोनों द्रव्य संपूर्ण लोकाकाश में व्यापकर तिष्ठते हैं । पुद्गलों का अवस्थान/व्यापकता आकाश द्रव्य के एक आदि अंश अर्थात् एक प्रदेश से लेकर दो, तीन, चार आदि प्रदेश बढ़ाते हुए संपूर्ण लोकाकाश में जानना चाहिए ।