असमीक्ष्याधिकरण: Difference between revisions
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Revision as of 16:18, 19 August 2020
अनर्थदंडव्रत के पाँच अतिचारों में एक अतिचार—प्रयोजन का विचार न करके आवश्यकता से अधिक किसी कार्य में प्रवृत्ति करना-कराना । हरिवंशपुराण 58. 179