अस्ति नास्ति भंग: Difference between revisions
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<span class="GRef"> स्याद्वादमंजरी/24/289/12 </span><span class="SanskritText">अमीषामेव त्रयाणां (अस्ति नास्ति अवक्तव्यानां) मुख्यत्वाच्छेषभंगानां च संयोगजत्वेनामीष्वेवांतर्भावादिति। | |||
</span>=<span class="HindiText">क्योंकि आदि के (अस्ति, नास्ति व अवक्तव्य ये) तीन भंग ही मुख्य भंग हैं, शेष भंग इन्हीं तीनों के संयोग से बनते हैं, अतएव उनका इन्हीं में अंतर्भाव हो जाता है।</span></p> | |||
<span class="GRef"> सप्तभंगीतरंगिणी/75/6 </span><span class="SanskritText">इत्येवं मूलभंगद्वये सिद्धे उत्तरे च भंगा एवमेव योजयितव्या:।</span> =<span class="HindiText">इस रीति से मूलभूत (अस्ति-नास्ति) दो भंग की सिद्धि होने से उत्तर भंगों की योजना करनी चाहिए।</span></p> | |||
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Revision as of 17:03, 30 December 2022
स्याद्वादमंजरी/24/289/12 अमीषामेव त्रयाणां (अस्ति नास्ति अवक्तव्यानां) मुख्यत्वाच्छेषभंगानां च संयोगजत्वेनामीष्वेवांतर्भावादिति।
=क्योंकि आदि के (अस्ति, नास्ति व अवक्तव्य ये) तीन भंग ही मुख्य भंग हैं, शेष भंग इन्हीं तीनों के संयोग से बनते हैं, अतएव उनका इन्हीं में अंतर्भाव हो जाता है।
सप्तभंगीतरंगिणी/75/6 इत्येवं मूलभंगद्वये सिद्धे उत्तरे च भंगा एवमेव योजयितव्या:। =इस रीति से मूलभूत (अस्ति-नास्ति) दो भंग की सिद्धि होने से उत्तर भंगों की योजना करनी चाहिए।
देखें सप्तभंगी - 4।