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<p>1. भगवान् वीरके तीर्थमें अनुत्तरोपपादक हुए..देखें [[ अनुत्तरोपपादक ]]; 2. विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर - देखें [[ विद्याधर ]]; 3. विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर - देखें [[ विद्याधर ]]; 4. गंधमादन विजयार्धपर स्थित एक कूट व उसका रक्षक देव - देखें [[ लोक ]]। 5/4; 5. म.प्र.73/श्लोक अयोध्यानगरके राजा वज्रबाहुका पुत्र था (41-42) दीक्षा धारण कर 11 अंगोंके अध्ययनपूर्वक तीर्थँकर प्रकृतिका बंध किया। संन्यासके समय पूर्वके आठवें भवके बैरी भाई कमठने सिंह बनकर इनको भख लिया। इन्होंने फिर प्राणतेंद्र पद पाया (61-68) यह पार्श्वनाथ भगवानका पूर्वका तीसरा भव है - देखें [[ पार्श्वनाथ ]]; 6. परमानंदके अपर नाम - देखें [[ मोक्षमार्ग#2.5 | मोक्षमार्ग - 2.5]]।</p> | |||
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<p id="4">(4) घातकीखंड द्वीप के पूर्व मेरु की पश्चिम दिशा में विद्यमान विदेह क्षेत्र के अंतर्गत नंदशीक नगर का निवासी एक सेठ । इसकी पत्नी का नाम यशस्विनी था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.96-97 </span></p> | |||
<p id="5">(5) भरतेश को वृषभदेव का समाचार देने वाला एक चर । <span class="GRef"> महापुराण 47.334 </span></p> | |||
<p id="6">(6) वृषभदेव के गणधर वृषभसेन के पूर्वभव का जीव । <span class="GRef"> महापुराण 47.367 </span></p> | |||
<p id="7">(7) तीर्थंकरों के जम्म और मोक्षकल्याण के समय इनके द्वारा किया जाने वाला अनेक रसमय एक नृत्य । <span class="GRef"> महापुराण 47.351, 49.25 </span>इसके आरंभ में गंधर्व गीत गाते हैं फिर इंद्र उल्लासपूर्वक नृत्य करता है । <span class="GRef"> महापुराण 14.158,47.351, 49.25, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 9.111-11 </span></p> | |||
<p id="8">(8) घातकीखंड द्वीप के पूर्व मेरु से पश्चिम की ओर स्थित विदेह क्षेत्र के अशोकपुर नगर का एक वैश्य । आनंदयशा इसी की पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.432-433 </span></p> | |||
<p id="9">(9) लंकाधिपति कीर्तिधवल का मंत्री । यह तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पूर्वभव का जीव था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6.58,20.23-24 </span></p> | |||
<p id="10">(10) रावण का धनुर्धारी घोड़ा । इसने भरतेश के साथ दीक्षा धारण कर परम पद पाया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 73.171, 88.1-4 </span></p> | |||
<p id="11">(11) उत्पलखेटपुर के राजा वज्रजंघ का पुरोहित वज्रजंघ के वियोग से शोक-संतप्त होकर इसने मुनि दृढ़धर्म से दीक्षा धारण की और तप करते हुए मरकर यह अधोग्रैवेयक में अहमिंद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 8.116, 9.91-93 </span></p> | |||
<p id="12">(12) अयोध्या के राजा वज्रबाहु और उसकी रानी प्रभंकरी का पुत्र । बड़ा होने पर वह महावैभव का धारक मंडलेश्वर राजा हुआ । मुनिराज विपुलमति से उसने धर्मश्रवण किया । जिन भक्ति मे लीन उसने एक दिन अपने सिर पर सफेद बाल देखे । वह संसार से विरक्त हो गया और उसने मुनि समुद्रदत्त से दीक्षा ली । तपस्या करते हुए उसको पूर्व जन्म के वैरी कमठ ने अपनी सिंह पर्याय में मार डाला । वह मरकर अमृत स्वर्ग के प्राणत विमान में इंद्र हुआ । वहाँ उसकी बीस सागर की आयु थी, साढ़े तीन हाथ ऊँचा शरीर था और शुक्ल लेश्या थी । वह दस मास में एक बार स्वास लेता था और बीस हजार वर्ष बाद मानसिक अमृताहार करता था । इसके मानसिक प्रवीचार था । पांचवीं पृथिवी तक उसके अवधिज्ञान का विषय था और सामानिक देव उसकी पूजा करते थे । <span class="GRef"> महापुराण 73.43-72 </span></p> | |||
<p id="13">(13) पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध भाग में मेरु पर्वत की पूर्व दिशा के विदेह क्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर स्थित वत्स देश के सुसीमा नगर के राजा पद्मगुल्म के दीक्षागुरु मुनि । चिरकाल तक तपश्चरण के बाद आयु के अंत में समाधिमरण से ये आरण स्वर्ग में इंद्र हुए । <span class="GRef"> महापुराण 56.2-3, 15-18 </span></p> | |||
<p id="14">(14) गंधमादन पर्वत का एक कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.218 </span></p> | |||
<p id="15">(15) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25. 167 </span></p> | |||
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Revision as of 16:19, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
1. भगवान् वीरके तीर्थमें अनुत्तरोपपादक हुए..देखें अनुत्तरोपपादक ; 2. विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर - देखें विद्याधर ; 3. विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर - देखें विद्याधर ; 4. गंधमादन विजयार्धपर स्थित एक कूट व उसका रक्षक देव - देखें लोक । 5/4; 5. म.प्र.73/श्लोक अयोध्यानगरके राजा वज्रबाहुका पुत्र था (41-42) दीक्षा धारण कर 11 अंगोंके अध्ययनपूर्वक तीर्थँकर प्रकृतिका बंध किया। संन्यासके समय पूर्वके आठवें भवके बैरी भाई कमठने सिंह बनकर इनको भख लिया। इन्होंने फिर प्राणतेंद्र पद पाया (61-68) यह पार्श्वनाथ भगवानका पूर्वका तीसरा भव है - देखें पार्श्वनाथ ; 6. परमानंदके अपर नाम - देखें मोक्षमार्ग - 2.5।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक नगर । हरिवंशपुराण 22.89
(2) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । हरिवंशपुराण 22. 93
(3) पांडव पक्ष का एक नृप । हरिवंशपुराण 50.125
(4) घातकीखंड द्वीप के पूर्व मेरु की पश्चिम दिशा में विद्यमान विदेह क्षेत्र के अंतर्गत नंदशीक नगर का निवासी एक सेठ । इसकी पत्नी का नाम यशस्विनी था । हरिवंशपुराण 60.96-97
(5) भरतेश को वृषभदेव का समाचार देने वाला एक चर । महापुराण 47.334
(6) वृषभदेव के गणधर वृषभसेन के पूर्वभव का जीव । महापुराण 47.367
(7) तीर्थंकरों के जम्म और मोक्षकल्याण के समय इनके द्वारा किया जाने वाला अनेक रसमय एक नृत्य । महापुराण 47.351, 49.25 इसके आरंभ में गंधर्व गीत गाते हैं फिर इंद्र उल्लासपूर्वक नृत्य करता है । महापुराण 14.158,47.351, 49.25, वीरवर्द्धमान चरित्र 9.111-11
(8) घातकीखंड द्वीप के पूर्व मेरु से पश्चिम की ओर स्थित विदेह क्षेत्र के अशोकपुर नगर का एक वैश्य । आनंदयशा इसी की पुत्री थी । महापुराण 71.432-433
(9) लंकाधिपति कीर्तिधवल का मंत्री । यह तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पूर्वभव का जीव था । पद्मपुराण 6.58,20.23-24
(10) रावण का धनुर्धारी घोड़ा । इसने भरतेश के साथ दीक्षा धारण कर परम पद पाया था । पद्मपुराण 73.171, 88.1-4
(11) उत्पलखेटपुर के राजा वज्रजंघ का पुरोहित वज्रजंघ के वियोग से शोक-संतप्त होकर इसने मुनि दृढ़धर्म से दीक्षा धारण की और तप करते हुए मरकर यह अधोग्रैवेयक में अहमिंद्र हुआ । महापुराण 8.116, 9.91-93
(12) अयोध्या के राजा वज्रबाहु और उसकी रानी प्रभंकरी का पुत्र । बड़ा होने पर वह महावैभव का धारक मंडलेश्वर राजा हुआ । मुनिराज विपुलमति से उसने धर्मश्रवण किया । जिन भक्ति मे लीन उसने एक दिन अपने सिर पर सफेद बाल देखे । वह संसार से विरक्त हो गया और उसने मुनि समुद्रदत्त से दीक्षा ली । तपस्या करते हुए उसको पूर्व जन्म के वैरी कमठ ने अपनी सिंह पर्याय में मार डाला । वह मरकर अमृत स्वर्ग के प्राणत विमान में इंद्र हुआ । वहाँ उसकी बीस सागर की आयु थी, साढ़े तीन हाथ ऊँचा शरीर था और शुक्ल लेश्या थी । वह दस मास में एक बार स्वास लेता था और बीस हजार वर्ष बाद मानसिक अमृताहार करता था । इसके मानसिक प्रवीचार था । पांचवीं पृथिवी तक उसके अवधिज्ञान का विषय था और सामानिक देव उसकी पूजा करते थे । महापुराण 73.43-72
(13) पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध भाग में मेरु पर्वत की पूर्व दिशा के विदेह क्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर स्थित वत्स देश के सुसीमा नगर के राजा पद्मगुल्म के दीक्षागुरु मुनि । चिरकाल तक तपश्चरण के बाद आयु के अंत में समाधिमरण से ये आरण स्वर्ग में इंद्र हुए । महापुराण 56.2-3, 15-18
(14) गंधमादन पर्वत का एक कूट । हरिवंशपुराण 5.218
(15) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 167