उत्तरचरहेतु: Difference between revisions
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<span class="GRef"> न्यायदीपिका/3/52-59/55-59/9 </span><p class="SanskritText">यथा-.... कश्चिदुत्तरचर:, यथा-उद्‌ग्गद्भरणि: प्राक्‌कृत्तिकोदयादित्यत्र कृत्तिकोदय:। कृत्तिकोदयो हि भरण्युदयोत्तरचरस्तं गमयति। ......।</p> | |||
<p class="HindiText">कोई '''उत्तरचर''' है, जैसे-एक मुहूर्त के पहले भरणी का उदय हो चुका है। क्योंकि इस समय कृत्तिका का उदय अन्यथा नहीं हो सकता’ यहाँ कृत्तिका का उदय '''उत्तरचर हेतु''' है। कारण, कृत्तिका का उदय भरणी के उदय के बाद होता है और इसलिए वह उसका उत्तरचर होता हुआ उसको जानता है।</p> | |||
<p>देखें [[ हेतु ]]।</p> | |||
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Revision as of 14:26, 18 January 2023
न्यायदीपिका/3/52-59/55-59/9
यथा-.... कश्चिदुत्तरचर:, यथा-उद्ग्गद्भरणि: प्राक्कृत्तिकोदयादित्यत्र कृत्तिकोदय:। कृत्तिकोदयो हि भरण्युदयोत्तरचरस्तं गमयति। ......।
कोई उत्तरचर है, जैसे-एक मुहूर्त के पहले भरणी का उदय हो चुका है। क्योंकि इस समय कृत्तिका का उदय अन्यथा नहीं हो सकता’ यहाँ कृत्तिका का उदय उत्तरचर हेतु है। कारण, कृत्तिका का उदय भरणी के उदय के बाद होता है और इसलिए वह उसका उत्तरचर होता हुआ उसको जानता है।
देखें हेतु ।