उत्तरचूलिका
From जैनकोष
कायोत्सर्गका एक अतिचार |
(अनगारधर्मामृत/8/109/822) उपध्यात्त्या क्रियालब्धमनालब्धं तदाशया। हीनं न्यूनाधिकं चूला चिरेणोत्तरचूलिका।109।
=वंदना को थोड़ी ही देर में ही समाप्त करके उसकी चूलिका रूप आलोचनादि को अधिक समय तक करना उत्तर चूलिका दोष है।109।
-अधिक जानकारी के लिए देखें व्युत्सर्ग - 1.11।