गुणभद्र: Difference between revisions
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<li> माणिक्यसेन के शिष्य सिद्धान्तवेत्ता। कृति–धन्यकुमार चरित, ग्रन्थ रचना काल चन्देलवंशी राजा परमार्दि देव के समय (ई.1182)। (ती./4/59)। </li> | <li> माणिक्यसेन के शिष्य सिद्धान्तवेत्ता। कृति–धन्यकुमार चरित, ग्रन्थ रचना काल चन्देलवंशी राजा परमार्दि देव के समय (ई.1182)। (ती./4/59)। </li> | ||
<li>काष्ठा संघ माथुर गच्छ मलय कीर्ति के शिष्य ‘रइधु’ के समकालीन अपभ्रंश कवि। कृति–सावण वारसि विहाण कहा, पक्खइ वय कहा, आयास पंचमी कहा, चंदायण वय कहा इत्यादि 15 कथायें। समय–वि.श. 15 का अन्त 16 का पूर्व (ई.श.15 उत्तरार्ध) (ती./4/216)। </li> | <li>काष्ठा संघ माथुर गच्छ मलय कीर्ति के शिष्य ‘रइधु’ के समकालीन अपभ्रंश कवि। कृति–सावण वारसि विहाण कहा, पक्खइ वय कहा, आयास पंचमी कहा, चंदायण वय कहा इत्यादि 15 कथायें। समय–वि.श. 15 का अन्त 16 का पूर्व (ई.श.15 उत्तरार्ध) (ती./4/216)। </li> |
Revision as of 13:49, 10 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- पंचस्तूप संघी, तथा महापुराण और जयधवला शेष के रचयिता आ.जिनसेन द्वि.के शिष्य। कृति–अपने गुरु कृत महापुराण को उत्तरपुराण की रचना करके पूरा किया। आत्मानुशासन, जिनदत्त चरित। समय–शक 820 में उत्तर पुराण की पूर्ति (ई.870-910)। (ती./3/8,9)।
- माणिक्यसेन के शिष्य सिद्धान्तवेत्ता। कृति–धन्यकुमार चरित, ग्रन्थ रचना काल चन्देलवंशी राजा परमार्दि देव के समय (ई.1182)। (ती./4/59)।
- काष्ठा संघ माथुर गच्छ मलय कीर्ति के शिष्य ‘रइधु’ के समकालीन अपभ्रंश कवि। कृति–सावण वारसि विहाण कहा, पक्खइ वय कहा, आयास पंचमी कहा, चंदायण वय कहा इत्यादि 15 कथायें। समय–वि.श. 15 का अन्त 16 का पूर्व (ई.श.15 उत्तरार्ध) (ती./4/216)।
पुराणकोष से
(1) वीरभद्र मुनि के सहगामी चारण ऋद्धिधारी एक मुनि । इन्होंने तापस वशिष्ठ का अज्ञान दूर किया था जिससे वह जिनदीक्षा लेकर आतापन योग में स्थिर हो गया था । महापुराण 70.322-328
(2) महापुराण के कर्त्ता आचार्य जिनसेन के शिष्य । इन्होंने उत्तरपुराण की रचना की थी । लोकसेन इनके शिष्य थे । इनके उत्तरपुराण से प्रेरित होकर आचार्य शुभचन्द्र ने पाण्डवपुराण की रचना की थी । महापुराण 57.67, पांडवपुराण 1.18-20