बुद्धि: Difference between revisions
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<p> | <p> षट्खण्डागम 13/5,5/ सू.40/243 <span class="SanskritText">आवायो ववसायो बुद्धी विण्णाणी आउंडी पच्चाउंडी ।39। ... ऊहितोऽर्थो बुद्ध्यते अवगम्यते अनया इति बुद्धिः ।</span> = <span class="HindiText">अवाय, व्यवसाय, बुद्धि, विज्ञप्ति, आमुण्डा और प्रत्यामुण्डा ये पर्याय नाम हैं ।39। ... जिसके द्वारा ऊहित अर्थ ‘बुद्ध्यते’अर्थात् जाना जाता है, वहबुद्धि है ।</span><br /> | ||
योगसार (अमितगति)/8/82 <span class="SanskritText">बुद्धिमक्षाश्रयां ... । </span>= <span class="HindiText">जो इन्द्रियों के अवलम्बन से हो वह बुद्धि है । </span><br /> | |||
स.म./8/88/30 <span class="SanskritText">बुद्धिशब्देन ज्ञानमुच्यते ।</span> = <span class="HindiText">बुद्धिका अर्थ ज्ञान है । </span><br /> | स.म./8/88/30 <span class="SanskritText">बुद्धिशब्देन ज्ञानमुच्यते ।</span> = <span class="HindiText">बुद्धिका अर्थ ज्ञान है । </span><br /> | ||
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/1/15/20 <span class="SanskritText">बुद्धिरुपलब्धिर्ज्ञानमित्यनर्थान्तरम् ।</span> = <span class="HindiText">बुद्धि, उपलब्धि और ज्ञान इनका एक ही अर्थ है । केवल नाम का भेद है ।</span></p> | |||
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Revision as of 19:13, 17 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
षट्खण्डागम 13/5,5/ सू.40/243 आवायो ववसायो बुद्धी विण्णाणी आउंडी पच्चाउंडी ।39। ... ऊहितोऽर्थो बुद्ध्यते अवगम्यते अनया इति बुद्धिः । = अवाय, व्यवसाय, बुद्धि, विज्ञप्ति, आमुण्डा और प्रत्यामुण्डा ये पर्याय नाम हैं ।39। ... जिसके द्वारा ऊहित अर्थ ‘बुद्ध्यते’अर्थात् जाना जाता है, वहबुद्धि है ।
योगसार (अमितगति)/8/82 बुद्धिमक्षाश्रयां ... । = जो इन्द्रियों के अवलम्बन से हो वह बुद्धि है ।
स.म./8/88/30 बुद्धिशब्देन ज्ञानमुच्यते । = बुद्धिका अर्थ ज्ञान है ।
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/1/15/20 बुद्धिरुपलब्धिर्ज्ञानमित्यनर्थान्तरम् । = बुद्धि, उपलब्धि और ज्ञान इनका एक ही अर्थ है । केवल नाम का भेद है ।
पुराणकोष से
(1) एक दिक्कुमारी देवी । यह तीर्थंकर की माता के बोध गुण का विकास करती है । इन्द्र जिन-माता के गर्भ का संशोधन करने इसे ही भेजता है । इसके रहने के लिए सरोवरों में कमलों पर भवन बनाये जाते हैं । महापुण्डरीक नामक सरोवर इसका मूल निवास स्थान है । यह व्यन्तरेन्द्र की प्रियांगना व्यन्तरी देवी है । महापुराण 12.163-164, 63. 200, हरिवंशपुराण 5.130, वीरवर्द्धमान चरित्र 7.105-108
(2) विवेचिका शक्ति । यह स्वभावज और विनयज के भेद से दो प्रकार की होती है । महापुराण 68.59