साम्राज्यक्रिया: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) गृहस्थ का गर्भ से निर्वाण | <p id="1"> (1) गृहस्थ का गर्भ से निर्वाण पर्यंत त्रेपन क्रियाओं में सैंतालीसवीं क्रिया-प्रजापालन की रीतियों के विषय में अन्य राजाओं को शिक्षा देना तथा योग और क्षेम का बार-बार चिंतन और पालन करते हुए दानव की उपलब्धि करना । <span class="GRef"> महापुराण 38.62, 264 </span></p> | ||
<p id="2">(2) सात कर्त्रन्वय क्रियाओं में पाँचवीं क्रिया । इसमें चक्ररत्न के साथ-साथ निधियों और रत्नों से उत्पन्न हुए भोगोपभोगों की प्राप्ति होती है । <span class="GRef"> महापुराण 39.202 </span></p> | <p id="2">(2) सात कर्त्रन्वय क्रियाओं में पाँचवीं क्रिया । इसमें चक्ररत्न के साथ-साथ निधियों और रत्नों से उत्पन्न हुए भोगोपभोगों की प्राप्ति होती है । <span class="GRef"> महापुराण 39.202 </span></p> | ||
Revision as of 16:38, 19 August 2020
(1) गृहस्थ का गर्भ से निर्वाण पर्यंत त्रेपन क्रियाओं में सैंतालीसवीं क्रिया-प्रजापालन की रीतियों के विषय में अन्य राजाओं को शिक्षा देना तथा योग और क्षेम का बार-बार चिंतन और पालन करते हुए दानव की उपलब्धि करना । महापुराण 38.62, 264
(2) सात कर्त्रन्वय क्रियाओं में पाँचवीं क्रिया । इसमें चक्ररत्न के साथ-साथ निधियों और रत्नों से उत्पन्न हुए भोगोपभोगों की प्राप्ति होती है । महापुराण 39.202