परकृति: Difference between revisions
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<p> न्यायदर्शन सूत्र/ टी./2/1/63/101/4 <span class="SanskritText">अन्यकर्तृकस्य व्याहतस्य विधेर्वादः परकृतिः। हुत्वा | <p> न्यायदर्शन सूत्र/ टी./2/1/63/101/4 <span class="SanskritText">अन्यकर्तृकस्य व्याहतस्य विधेर्वादः परकृतिः। हुत्वा वपामेवाग्रेऽभिधारयंति अथ पृषदाज्यं तदुह चरकाध्वर्यवः पृषदाज्यमेवाग्रेऽभिधारयंति ‘अग्ने प्राणाः’ पृषदाउस्तोममित्येवमभिदधतीत्येवादि। </span>= <span class="HindiText">जो वाक्य मनुष्यों के कमो में परस्पर विरोध दिखावे उसे ‘परकृति’ कहते हैं। जैसे - कोई तो वपाकोस्रुवे में रखकर प्रणीता में डालते हैं और कोई घृत को स्रुवासे से प्रणीता में डालते हैं, और उनकी प्रशंसा करते हैं। </span></p> | ||
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Revision as of 16:28, 19 August 2020
न्यायदर्शन सूत्र/ टी./2/1/63/101/4 अन्यकर्तृकस्य व्याहतस्य विधेर्वादः परकृतिः। हुत्वा वपामेवाग्रेऽभिधारयंति अथ पृषदाज्यं तदुह चरकाध्वर्यवः पृषदाज्यमेवाग्रेऽभिधारयंति ‘अग्ने प्राणाः’ पृषदाउस्तोममित्येवमभिदधतीत्येवादि। = जो वाक्य मनुष्यों के कमो में परस्पर विरोध दिखावे उसे ‘परकृति’ कहते हैं। जैसे - कोई तो वपाकोस्रुवे में रखकर प्रणीता में डालते हैं और कोई घृत को स्रुवासे से प्रणीता में डालते हैं, और उनकी प्रशंसा करते हैं।