परकृति
From जैनकोष
न्यायदर्शन सूत्र/ टी./2/1/63/101/4 अन्यकर्तृकस्य व्याहतस्य विधेर्वादः परकृतिः। हुत्वा वपामेवाग्रेऽभिधारयंति अथ पृषदाज्यं तदुह चरकाध्वर्यवः पृषदाज्यमेवाग्रेऽभिधारयंति ‘अग्ने प्राणाः’ पृषदाउस्तोममित्येवमभिदधतीत्येवादि। = जो वाक्य मनुष्यों के कमो में परस्पर विरोध दिखावे उसे ‘परकृति’ कहते हैं। जैसे - कोई तो वपाकोस्रुवे में रखकर प्रणीता में डालते हैं और कोई घृत को स्रुवासे से प्रणीता में डालते हैं, और उनकी प्रशंसा करते हैं।