रुद्रदत्त: Difference between revisions
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1">(1) वृषभदेव के तीर्थ में अयोध्या के राजा रत्नवीर्य के राज्य में हुए सेठ | <p id="1">(1) वृषभदेव के तीर्थ में अयोध्या के राजा रत्नवीर्य के राज्य में हुए सेठ सुरेंद्रदत्त का मित्र एक ब्राह्मण । सेठ इसे पूजा के लिए उपयुक्त धन देकर बाहर चला गया था । इसने जुआ और वेश्यावृत्ति में समस्त धन व्यय कर दिया और चोरी करने लगा । अंत में यह सेनापति श्रेणिक के द्वारा मारा गया और सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 70.147, 151-161, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.97-101 </span></p> | ||
<p id="2">(2) हेमांगद-देश में राजपुर नगर के राजा | <p id="2">(2) हेमांगद-देश में राजपुर नगर के राजा सत्यंधर का पुरोहित । यह मंत्री काष्ठांगारिक को राजा के मार डालने की सलाह देने के फलस्वरूप तीन दिन बाद ही बीमार होकर मर गया था तथा मरकर नरक में उत्पन्न हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 75.207-216 </span></p> | ||
<p id="3">(3) चारुदत्त का बहु व्यसनी चाचा । चारुदत्त को व्यसनी इसी ने बनाया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 21. 40 </span></p> | <p id="3">(3) चारुदत्त का बहु व्यसनी चाचा । चारुदत्त को व्यसनी इसी ने बनाया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 21. 40 </span></p> | ||
Revision as of 16:33, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से == भगवान् ऋषभदेव के तीर्थ में एक ब्राह्मण था। पूजा के लिए प्राप्त किये द्रव्य से जुआ खेलने के फलस्वरूप सातवें नकर में गया ( हरिवंशपुराण/18/97 - 101 )।
पुराणकोष से
(1) वृषभदेव के तीर्थ में अयोध्या के राजा रत्नवीर्य के राज्य में हुए सेठ सुरेंद्रदत्त का मित्र एक ब्राह्मण । सेठ इसे पूजा के लिए उपयुक्त धन देकर बाहर चला गया था । इसने जुआ और वेश्यावृत्ति में समस्त धन व्यय कर दिया और चोरी करने लगा । अंत में यह सेनापति श्रेणिक के द्वारा मारा गया और सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण 70.147, 151-161, हरिवंशपुराण 18.97-101
(2) हेमांगद-देश में राजपुर नगर के राजा सत्यंधर का पुरोहित । यह मंत्री काष्ठांगारिक को राजा के मार डालने की सलाह देने के फलस्वरूप तीन दिन बाद ही बीमार होकर मर गया था तथा मरकर नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण 75.207-216
(3) चारुदत्त का बहु व्यसनी चाचा । चारुदत्त को व्यसनी इसी ने बनाया था । हरिवंशपुराण 21. 40