नैननि को वान परी, दरसन की: Difference between revisions
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Latest revision as of 00:58, 17 February 2008
(राग ख्याल)
नैननि को वान परी, दरसन की ।।टेक ।।
जिन मुखचन्द चकोर चित मुझ, ऐसी प्रीति करी ।।नैन. ।।
और अदेवन के चितवनको अब चित चाह टरी ।
ज्यों सब धूलि दबै दिशि दिशिकी, लागत मेघझरी ।।१ ।।नैन. ।।
छबि समाय रही लोचनमें, विसरत नाहिं घरी ।
`भूधर' कह यह टेव रहो थिर, जनम जनम हमरी ।।२ ।।नैन. ।।