अवक्तव्यवाद: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">युक्त्यनुशासन श्लोक 28 उपेयतत्त्वाऽनभिलाप्यता वद्-उपायतत्त्वाऽनभिलाप्यता स्यात्। अवेषतत्त्वाऽनभिलाप्यतायां, द्विषां भवद्युक्त्यभिलाप्यतायाः।</p> | <p class="SanskritText">युक्त्यनुशासन श्लोक 28 उपेयतत्त्वाऽनभिलाप्यता वद्-उपायतत्त्वाऽनभिलाप्यता स्यात्। अवेषतत्त्वाऽनभिलाप्यतायां, द्विषां भवद्युक्त्यभिलाप्यतायाः।</p> | ||
<p class="HindiText">= हे भगवन्! आपकी युक्तिकी अभिलाप्यताके जो देषी है, उन द्वेषियोंको इस मान्यतापर कि | <p class="HindiText">= हे भगवन्! आपकी युक्तिकी अभिलाप्यताके जो देषी है, उन द्वेषियोंको इस मान्यतापर कि संपूर्ण तत्त्व अनभिलाप्य हैं, उपेयतत्त्वकी अवाच्यताके सामान्य उपायतत्त्व भी सर्वथा अवाच्य हो जाता है।</p> | ||
<p class="SanskritText">स्व.स्तो/100 ये ते स्वघातिनं दोष शमीकर्त्तृमनीश्वराः। त्वद्द्विषःस्वहनो बालास्तत्त्वावक्तव्यतां श्रियाः ॥100॥</p> | <p class="SanskritText">स्व.स्तो/100 ये ते स्वघातिनं दोष शमीकर्त्तृमनीश्वराः। त्वद्द्विषःस्वहनो बालास्तत्त्वावक्तव्यतां श्रियाः ॥100॥</p> | ||
<p class="HindiText">= वे | <p class="HindiText">= वे एकांतवादी जन जो उस स्वघाती दोषको दूर करनेके लिए असमर्थ हैं, आपसे द्वेष रखते हैं, आत्माघाती हैं, और बालक हैं। उन्होंने तत्त्वकी अवक्तव्यता को आश्रित किया है।</p> | ||
<p>2. | <p>2. सम्यगेकांत की अपेक्षा- </p> | ||
<p class="SanskritText">पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 747 तत्त्वमनिर्वचनीयं शुद्धद्रव्यार्थिकस्य भवति मतम्। गुणपर्ययवद्द्रव्य पर्यायार्थिकनयस्य पक्षोऽयम् ॥747॥</p> | <p class="SanskritText">पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 747 तत्त्वमनिर्वचनीयं शुद्धद्रव्यार्थिकस्य भवति मतम्। गुणपर्ययवद्द्रव्य पर्यायार्थिकनयस्य पक्षोऽयम् ॥747॥</p> | ||
<p class="HindiText">= `तत्त्व अनिर्वचनीय है' यह शुद्ध द्रव्यार्थिकनयका पक्ष है; तथा `गुणपर्यायवाला तत्त्व है' यह पर्यायार्थिक नयका पक्ष है।</p> | <p class="HindiText">= `तत्त्व अनिर्वचनीय है' यह शुद्ध द्रव्यार्थिकनयका पक्ष है; तथा `गुणपर्यायवाला तत्त्व है' यह पर्यायार्थिक नयका पक्ष है।</p> |
Revision as of 16:17, 19 August 2020
1. मिथ्या एकांतकी अपेक्षा-
युक्त्यनुशासन श्लोक 28 उपेयतत्त्वाऽनभिलाप्यता वद्-उपायतत्त्वाऽनभिलाप्यता स्यात्। अवेषतत्त्वाऽनभिलाप्यतायां, द्विषां भवद्युक्त्यभिलाप्यतायाः।
= हे भगवन्! आपकी युक्तिकी अभिलाप्यताके जो देषी है, उन द्वेषियोंको इस मान्यतापर कि संपूर्ण तत्त्व अनभिलाप्य हैं, उपेयतत्त्वकी अवाच्यताके सामान्य उपायतत्त्व भी सर्वथा अवाच्य हो जाता है।
स्व.स्तो/100 ये ते स्वघातिनं दोष शमीकर्त्तृमनीश्वराः। त्वद्द्विषःस्वहनो बालास्तत्त्वावक्तव्यतां श्रियाः ॥100॥
= वे एकांतवादी जन जो उस स्वघाती दोषको दूर करनेके लिए असमर्थ हैं, आपसे द्वेष रखते हैं, आत्माघाती हैं, और बालक हैं। उन्होंने तत्त्वकी अवक्तव्यता को आश्रित किया है।
2. सम्यगेकांत की अपेक्षा-
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 747 तत्त्वमनिर्वचनीयं शुद्धद्रव्यार्थिकस्य भवति मतम्। गुणपर्ययवद्द्रव्य पर्यायार्थिकनयस्य पक्षोऽयम् ॥747॥
= `तत्त्व अनिर्वचनीय है' यह शुद्ध द्रव्यार्थिकनयका पक्ष है; तथा `गुणपर्यायवाला तत्त्व है' यह पर्यायार्थिक नयका पक्ष है।
(और भी देखें अवक्तव्य नय )।
3. अवक्तव अवक्तव्यका समन्वय-देखें सप्तभंगी - 6।