विभाव: Difference between revisions
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<li><strong>[[विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश#1.2 | | <li><strong>[[विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश#1.2 | स्वभाव व विभाव क्रिया तथा उनकी हेतुभूता वैभाविकी शक्ति। ]]<br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश#1.3 | | <li><strong>[[विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश#1.3 | वह शक्ति नित्य है, पर स्वयं स्वभाव या विभाव रूप परिणत हो जाती है। ]]<br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश#1.4 | | <li><strong>[[विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश#1.4 | स्वाभाविक व वैभाविक दो शक्तियाँ मानना योग्य नहीं। ]]<br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश#1.5 | | <li><strong>[[विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश#1.5 | स्वभाव व विभाव शक्तियों का समन्वय। ]]<br /> | ||
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<li><strong> [[रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना | <li><strong> [[रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना ]]<br /> | ||
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<li>कषाय जीव का स्वभाव नहीं।–देखें [[ कषाय#2.3 | कषाय - 2.3]]। </li> | <li>कषाय जीव का स्वभाव नहीं।–देखें [[ कषाय#2.3 | कषाय - 2.3]]। </li> | ||
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<li> <strong>[[रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना#2.1 | | <li> <strong>[[रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना#2.1 | कषाय चारित्र गुण की विभाव पर्याय है। ]]<br /> | ||
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<li> <strong>[[रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना#2.3 | | <li> <strong>[[रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना#2.3 | विभाव भी कथंचित् स्वभाव है। ]]<br /> | ||
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<li> <strong>[[रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना#2.4 | | <li> <strong>[[रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना#2.4 | शुद्ध जीव में विभाव कैसे हो जाता है?]]<br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव का कथंचित् सहेतुकपना#3.2 | | <li><strong>[[विभाव का कथंचित् सहेतुकपना#3.2 | जीव की अन्य पर्यायें भी कर्मकृत हैं। ]]<br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव का कथंचित् सहेतुकपना#3.3 | | <li><strong>[[विभाव का कथंचित् सहेतुकपना#3.3 | पौद्गलिक विभाव सहेतुक हैं। ]]<br /> | ||
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<li><strong>[[ विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय]] </strong><br /> | <li><strong>[[ विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय]] </strong><br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय#5.2 | | <li><strong>[[विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय#5.2 | रागादि भाव संयोगी होने के कारण किसी एक के नहीं कहे जा सकते। ]]<br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय#5.3 | | <li><strong>[[विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय#5.3 | ज्ञानी व अज्ञानी की अपेक्षा से दोनों बातें ठीक हैं। ]]<br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय#5.4 | | <li><strong>[[विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय#5.4 | दोनों का नयार्थ व मतार्थ।]] <br /> | ||
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<li><strong>[[विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय#5.5 | | <li><strong>[[विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय#5.5 | दोनों बातों का कारण व प्रयोजन। ]]<br /> | ||
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Revision as of 22:18, 23 July 2020
कर्मों के उदय से होने वाले जीव के रागादि विकारी भावों को विभाव कहते हैं। निमित्त की अपेक्षा कथन करने पर ये कर्मों के हैं और जीव की अपेक्षा कथन करने पर ये जीव के हैं। संयोगी होने के कारण वास्तव में ये किसी एक के नहीं कहे जा सकते। शुद्धनय से देखने पर इनकी सत्ता ही नहीं है।
- विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश
- वैभाविकी शक्ति केवल जीव व पुद्गल में ही है।–देखें गुण - 3.8।
- वैभाविकी शक्ति केवल जीव व पुद्गल में ही है।–देखें गुण - 3.8।
- रागादिक में कथंचित् स्वभाव-विभावपना
- कषाय जीव का स्वभाव नहीं।–देखें कषाय - 2.3।
- संयोगी होने के कारण विभाव की सत्त ही नहीं है।–देखें विभाव - 5.6।
- रागादि जीव के नहीं पुद्गल के हैं।–देखें मूर्त - 9।
- विभाव का कथंचित् सहेतुकपना
- जीव व कर्म का निमित्त-नैमित्तिकपना।–देखें कारण - III.3.5।
- जीव व कर्म का निमित्त-नैमित्तिकपना।–देखें कारण - III.3.5।
- विभाव का कथंचित् अहेतुकपना
- जीव भावों का निमित्त पाकर पुद्गल स्वयं कर्मरूप परिणमता है।–देखें कारण - III.3।
- जीव भावों का निमित्त पाकर पुद्गल स्वयं कर्मरूप परिणमता है।–देखें कारण - III.3।
- विभाव के सहेतुक-अहेतुकपने का समन्वय
- कर्म जीव का पराभव कैसे करता है?
- रागादि भाव संयोगी होने के कारण किसी एक के नहीं कहे जा सकते।
- ज्ञानी व अज्ञानी की अपेक्षा से दोनों बातें ठीक हैं।
- दोनों का नयार्थ व मतार्थ।
- दोनों बातों का कारण व प्रयोजन।
- विभाव का अभाव सम्भव है।–देखें राग - 5।
- कर्म जीव का पराभव कैसे करता है?