अलंकारोदय: Difference between revisions
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<p>( पद्मपुराण सर्ग 4/श्लो.नं.) पृथिवीके भीतर अत्यंत गुप्त एक सुंदर नगरी थी/162-164। इसको रावणके पूर्वज मेघवाहनके लिए राक्षसोंके इंद्र भीम सुभीमने रक्षार्थ प्रदान की थी।</p> | <p>( पद्मपुराण सर्ग 4/श्लो.नं.) पृथिवीके भीतर अत्यंत गुप्त एक सुंदर नगरी थी/162-164। इसको रावणके पूर्वज मेघवाहनके लिए राक्षसोंके इंद्र भीम सुभीमने रक्षार्थ प्रदान की थी।</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> पृथिवी के भीतर अत्यंत गुप्त इस नाम का एक नगर । यह छ: योजन गहरा, एक सौ साढ़े इकतीस योजन और डेढ़ कला प्रमाण चौड़ा था । इसमें बड़े-बड़े महल थे, यहाँ पहुँचने के लिए दंडक पर्वत के गुहाद्वार से नीचे जाने पर तोरणों से युक्त महाद्वार से प्रवेश करना पड़ता था । सीता-हरण के बाद यहाँ के राजा विराधित के निवेदन पर राम-लक्ष्मण ने कुछ समय यहाँ निवास किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.163-166, 43.24-25, 45.92-99 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> पृथिवी के भीतर अत्यंत गुप्त इस नाम का एक नगर । यह छ: योजन गहरा, एक सौ साढ़े इकतीस योजन और डेढ़ कला प्रमाण चौड़ा था । इसमें बड़े-बड़े महल थे, यहाँ पहुँचने के लिए दंडक पर्वत के गुहाद्वार से नीचे जाने पर तोरणों से युक्त महाद्वार से प्रवेश करना पड़ता था । सीता-हरण के बाद यहाँ के राजा विराधित के निवेदन पर राम-लक्ष्मण ने कुछ समय यहाँ निवास किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.163-166, 43.24-25, 45.92-99 </span></p> | ||
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Revision as of 16:51, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
( पद्मपुराण सर्ग 4/श्लो.नं.) पृथिवीके भीतर अत्यंत गुप्त एक सुंदर नगरी थी/162-164। इसको रावणके पूर्वज मेघवाहनके लिए राक्षसोंके इंद्र भीम सुभीमने रक्षार्थ प्रदान की थी।
पुराणकोष से
पृथिवी के भीतर अत्यंत गुप्त इस नाम का एक नगर । यह छ: योजन गहरा, एक सौ साढ़े इकतीस योजन और डेढ़ कला प्रमाण चौड़ा था । इसमें बड़े-बड़े महल थे, यहाँ पहुँचने के लिए दंडक पर्वत के गुहाद्वार से नीचे जाने पर तोरणों से युक्त महाद्वार से प्रवेश करना पड़ता था । सीता-हरण के बाद यहाँ के राजा विराधित के निवेदन पर राम-लक्ष्मण ने कुछ समय यहाँ निवास किया था । पद्मपुराण 5.163-166, 43.24-25, 45.92-99